कहानी

कहानी : अनसुलझी सिर्फ मेरी जिद

यह कहानी पूरी तरह शर्माजी के चरित्र की सत्य घटना से जुड़ी है इनका पूरा नाम श्याम सुन्दर शर्मा है। ये कहानी बड़ी दिलचस्प और ऐसी उलझनों से मिलती जुलती है, जिसे पढ़कर सभी को स्वयं पर ही घटित घटना लगती हैं।
तो कहानी इस प्रकार है- आज शर्माजी बहुत अनमने से बिस्तर पर लेटे हैं, शायद मन में कुछ उलझन सी लगी थी। हमेशा की तरह अपने बीबी को डांटना, बच्चों से भी रूखा व्यवहार  यानि शर्माजी बहुत ही कठोर स्वभाव के व्यक्ति हैं। उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी में तो कभी एसा दिन नही गया कि वे बिना घर में झगड़ा किये रहे हों। कभी अखबार समय पर नही मिलना, कभी बच्चों का टीवी देखना, कभी शर्माजी के टीवी पर समाचार देखने पर यदि बच्चों में से किसी ने बात की या परेशान किया तो उसकी खैर नही यानि उनके ऑफिस जाने के पहले और उनके आने के बाद तो घर में जैसे कर्फ़्यू लग जाता था। अगर कोई चीज खो गयी हो तो तुफान आ जाता था किसी को चीज का पता न हो तब भी पूरा घर खोजने लग जाता था। मगर इतना आतंक होने पर भी शर्माजी दिल के बहुत भोले इमानदार और कट्टर सिद्धांतवादी हैं। शर्माजी भूमि विकास बैंक मे सूपरवाईजर के पद पर थे। उनका रूखा व्यवहार बचपन से नही था औरों की  तरह अपने जीवन में शर्माजी भी बहुत चंचल, मौज मस्ती वाले हुआ करते थे पर समय की मार हर इन्सान को पत्थर का बुत देती है। शर्माजी बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार थे। वो आगे पढ़ना चाहते थे लेकिन गांव की शिक्षा, गरीबी और बडा परिवार जिसमें शर्माजी सबसे बड़े बेटे थे। बड़े होने का फर्ज कितना महत्वपूर्ण होता है जो जिम्मेदार होता है हर जिम्मेदारी उसी के कन्धो पर होती है। शर्माजी को आगे पढ़ने के लिये उन्हें अपने रिश्तेदार के यंहा शरण लेनी पड़ी। मजबुरी इन्सान को कितनी जिल्लत उठाने पर मजबूर कर  देती है वो ही जानता है जिसने गरीबी को जिया है। अपनी पढ़ाई के लिये शर्माजी को बहुत कुछ सहना पड़ा। जैसे उस जमाने में उन्होने बी ए पास किया नौकरी के ऑफ़र आने लगे शर्माजी ने कई नौकरियां की। लेकिन उन्होने अपने सँगीत के शौक के कारण नौकरी छोड़ दी।
उसके बाद उन्हें भूमि विकास बैंक में नौकरी मिल गयी। उस जमाने में नौकरी आसानी से मिल जाती थी। आज तो हम कितने ही हाथ पैर मार लें नौकरी नही मिल पाती। शर्माजी की किस्मत इस क्षेत्र में अच्छी रही। इस तरह शर्माजी ने अपने शौक भी जारी रखे अपने परिवार को सहयोग किया अपने सभी भाई बहनों की शादी की। इसी बीच शर्माजी की भी शादी हो गयी। उनकी पत्नी लक्ष्मी के दस साल तक कोई सन्तान नही हुई थी। इसलिये उनकी पत्नी को काफी जिल्लत सहनी पड़ती थी। मगर शर्माजी की पत्नी बहुत ही सीधी सादी संस्कारी थीं। हमेशा परिवार की सेवा मन लगाकर करती थी। कहते हैं न की भोले के भगवान होते हैं। भगवान ने इनकी सुन ली और एक सुन्दर सी बच्ची ने जन्म लिया जो बहुत सुन्दर थी। बड़ी बेटी को सभी ने बहुत लाड़ प्यार से पाला। उसके 2 साल बाद तो दो जुड़वा बेटियों ने जन्म लिया। पुत्र मोह पोते का मुहँ देखना,आदि रुढि परम्पराओं के कारण  शर्माजी के यंहा चार पुत्रियों के पश्चात बेटे का जन्म हुआ। सभी बहुत खुश थे। लेकिन शर्माजी के मन में पुत्र मोह नही था वो अपने सभी बच्चों से वेहद प्यार करते हैं लेकिन एक पिता जो की हिटलर की तरह होता है जो अपने बच्चों को सामने प्यार का दिखावा नही करता लेकिन उसे अपने बच्चों की बहुत फ़िकर रहती है। शर्माजी मन के बहुत जिद्दी हैं इसलिये उनके फैसले उन्होने ऐसे लिये जो कि आज खुद उनके लिये एक उलझन बन गयी हैं। उन्हें आज सभी उन बातों का पछ्तावा है जो उन्होने केवल जिद में पूरी की। उन्होने अपने बच्चों को पढ़ाने में अपनी आय लगा दी लेकिन मेहनत के बाद भी बच्चों ने उनके मुताबिक कुछ भी सफलता अर्जित नही कर पाये। शर्माजी का लक्ष्य अपने बच्चों के प्रति बहुत बढ़ा था वे अपनी सन्तानों को डॉक्टर, इंजीनियर बनाना चाहते थे। लेकिन किस्मत को शायद ये मंजूर नही था बच्चों के द्वारा  अच्छा रिजल्ट नही दे पाने से शर्माजी के मन को बहुत गहरा धक्का लगा उन्हे अपने बच्चों से काफी उम्मीद थी पर कोई भी सन्तान उनके मन के मुताबिक रिजल्ट नही दे पायीं। लेकिन शर्माजी की तरह और उनकी पत्नी लक्ष्मी के संस्कार उनके बच्चों में कूट कूटकर भाराए हुये थे। शर्माजी की तरह उनके बच्चे मेहनती थे और अपनी माताजी की तरह शान्त सुशील थे। उनकी बड़ी बेटी चाहे कुछ बन न पाई हो पर आज भोपाल जैसे बड़े शहर में बुटीक में महारत हासिल कर अपनी पहचान जमा चुकी है। उनकी दोनो जुड़वा बेटियाँ शिक्षिका के पद पर अपनी सेवा दे रही हैं और सम्मान प्राप्त कर रही हैं। छोटी बेटी चाहे कोई नौकरी नही कर रही है लेकिन अपने परिवार की सेवा करती हैं। और कृषि क्षेत्र में अपने पति का हाथ बंटाती है। सबसे छोटा एक बेटा जो किस्मत की खेर माने तो शर्माजी ने अपने बेटे को मन के मुताबिक इंजीनियर तो बनवा दिया। लेकिन इस जिद से बेटे ने ज्यादा सफलता हासिल नही की।
कहते हैं इन्सान की जिद भी परेशानियों की जड़ जमा देती हैं। हुआ कुछ यूँ की शर्माजी की नौकरी काफी अच्छी चल रही थी और शर्माजी बहुत ईमानदार और अपने कर्तव्यों के प्रति बहुत ही सजग रहें। लेकिन आज के युग में एक ईमानदार व्यक्ति को जीने के लिए भी मजबूर कर देते हैं लोग यही शर्माजी के साथ हुआ। उनकी किसी ने विभाग मे झूठी अफवाह फैला दी गयी। शर्माजी का गुस्सा तो इतना था की उन्होने सभी को लताड़ दिया जिससे विभाग में कुछ लोग उनसे जलने लगे थे। समय बीतते गए बड़ी बेटी को अचानक बाय की बिमारी हो गयी थी काफी इलाज कराया। इसी बीच बेटी की बिमारी को लोगो ने गलत तरीके से फैलाना  शुरू कर दिया। बडी बेटी के रिश्ते आने में कठिनाइयाँ आने लगी बहुत थक हार कर एक एसा रिश्ता तय करना पड़ा जो दहेज लोभी था लेकिन मजबूरी में व्यक्ति इतना असहाय हो जाता है की अपना अच्छा-बुरा भी भगवान पर छोड़ देता है शर्माजी ने इस रिश्ते को मना करना चाहा लेकिन अपनी बच्ची और पत्नी की हालत नही देखी जा सकती थी। शादी में बहुत अड़चने आई लेकिन फिर भी धूम धाम से शादी कर्ज लेकर कर दी गयी। उसके पश्चात शर्माजी की इच्छा अपने गांव जँहा खेती थी उसे करने का निर्णय लिया। क्युकी वो गांव के नौकरी करने की जगह से पास था सो अपने बाकी बच्चों की शादी के लिए  उन्होने खेती संभालने के लिये सभी बच्चों को लेकर गांव प्रस्थान कर लिया बच्चों के लिये अपने पिता के इस फैसले से बहुत तकलिफ हुई थी क्युकी वे गांव नही जाकर वंही आगे की पढ़ाई करना चाहते थे। बेटियों के 12वीं में कम प्रतिशत ने उन्होने अपनी बेटियों के सपनों को चकनाचूर कर दिया। क्युकी शर्माजी की इच्छा थी की अगर बेटियों ने अच्छे अंक प्राप्त किये तो आगे की पढ़ाई कर्वाऊन्गा नही तो नही। बेटियाँ अपने पिता की जिद के आगे कुछ नही कर पाई लेकिन शायद बेटियों के नसीब में उनके मामा ने आकर शर्माजी को बहुत समझाया तब कहीं जाकर बेटियों को विषय बदलकर उन्हें प्राईवेट फॉर्म भरवायें गयें। बेटियाँ  खुश नही थी उनके सपने कुछ और थे लेकिन एक पिता के कठोर निर्णय ने उन्हें सिर्फ कॉलेज करने का ही सफर चुनने दिया। उसके पश्चात बेटे को उन्होने बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। कुछ दिन में उन्होने जमीन में मेहनत करके बंजर जमीन को हरा भरा बना दिया लेकिन तकदीर यहां भी कुछ सोचकर बैठी थी उनके छोटे भाई नें जमीं का आधा हिस्सा मांग लिया ये सुनकर शर्माजी ह्क्के बक्के रह गए। जिस बड़े भाई ने उन्हे पढ़ाया पैर पर खड़ाकर उसकी शादी की और बिजनेस से लगाया वही भाई ने, इतनी बुरी स्थिति में  ,भी सहयोग करने की बजाय उनसे जमीन का हिस्सा मांग लिया। बहुत दुखी होकर उन्होने आधा हिस्सा छोटे भाई को दे दिया। उसके कुछ दिन बाद शर्माजी का अचानक ट्रांसफर दूर दराज कर दिया गया। शर्माजी के पैरों तले जमीन खिसक गई। उन्होने कम से कम छह महिने का मेडिकल लगाया लेकिन उनसे जो लोग घात लगाए बैठे थे। शर्माजी की शिकायत कर दी गयी थी सो मेडिकल के बाद भी कुछ हल नही निकला। शर्माजी ने थक हारकर इस्तीफा देने का निर्णय कर लिया। पत्नी के लाख समझाने पर भी नही माने और उन्होने नौकरी छोढ़ दी। और अपना पूरा समय खेती में लगाने लगे। लेकिन केवल छह एकड़ जमीन में कितनी पैदावार होती हर वार प्राकर्तिक प्रकोप से लागत जितनी आय नही हो पाती इसी बीच शर्माजी ने कठिन परिस्थियों के चलते अपनी तीनो बेटीयों की शादीयां सम्मेलन से कर दी। अपने पिता और माता की इतनी बुरी परिस्थति के चलते बेटियो ने भी अपने दिल पर पत्थर रख चुपचाप विदा हो गयी। लेकिन ईश्वर को पता नही क्या मंजूर था की बेटियों की शादी के बाद ही परिवार को इतनी बुरी विपत्तियों ने घेर लिया शर्माजी पर उनके दोस्त के मर्डर केश में उनको उलझा दिया गया। हुआ ये था की, एक दिन शर्माजी और उनके बाकी दोस्त ताश खेल रहे थे, अचानक उनका गांव का दोस्त अन्दर घर के अन्दर जाकर कीटनाशक दवाई पी लेता है। जब उल्तियो की आवाज आती है तब शर्माजी और उनके बाकी दोस्त घबराकर उसे अस्पताल ले जाते हैं, बाकी दोस्त स्थिति को भांप कर खिशक लेते हैं। लेकिन शर्माजी भोले थे, उनके मन में और के जैसा जहर नही था सो उन्होने अपने दोस्त को अस्पताल ले गए। वहां उनका दोस्त बयान नही दे पाया और वो मर गया। इसका इल्जाम दोस्त की बेटी ने पैसे हथियाने के चक्कर में शर्माजी पर लगा दिया। ये ईश्वर ने इनकी इतनी कठिन परीक्षा ली शर्माजी बेकसूर होते हुए भी खुद को बचाने के लिये दूसरों के दरवाजे तक दस्तक देने गए। लेकिन किसी ने उनकी मदद नही की। लेकिन भगवान किसी न किसी को तो मदद के लिये भेजता ही है, आखिर एक शक्स ने उनके केश को हेंडल कर लिया और शर्माजी केश से बरी हो गए। इतनी विपरित परिस्थियों को जीने वाला इन्सान जीता तो है लेकिन अपना सब कुछ खो देता है अपनी हंसी, अपनी चंचलता अपना स्वभाव और हम अनायास ही उसके व्यवहार का पता सिर्फ उसके न बोलने से लगा लेते हैं। कहते हैं की सत्य परेशान जरुर होता है लेकिन जीतता वही है। आज इन सभी बातों को याद करते हुये शर्माजी की पलके भीगी हुई थी। उनके मन में यही एक उलझन थी की ये जिद क्या सही थी? क्या ये निर्णय सही थे ? क्या मुझे कोई उस बिपरीत परिस्थितियों में समझा सकता था? बस यही सोचकर उनका मन उलझनों से भर आया था आज। अचानक पत्नी लक्ष्मी ने उनके कन्धों पर हाथ रखकर उन्हें चाय का प्याला देते हुये कहा सब ठीक हो जाएगा पत्नी की बात सुनकर शर्माजी थोड़े रिलेक्स हुये क्योकि हर परिस्थितियो में आज उनकी पत्नी ने उनका साथ दिया था और अब तो शर्माजी के सभी बच्चें उनके साथ  सायें की तरह है।

— वीणा चौबे

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.