लघुकथा

रिश्तों की ऊष्मा

”भैय्या, ये मैं क्या सुन रहा हूँ ! आप खेत मुझे देने के बजाय किसी और को दे रहे हैं ?” छोटे के स्वर में मायूसीजनित शिकायत थी ।

”तो ! और तुमसे ये किसने कह दिया कि खेत किसी और को दे रहा हूँ ? खेत की बोली लगवा रहा हूँ । जो अधिक पैसे देगा खेत उसका ! ”

” लेकिन आपने तो मुझे देने का वायदा किया था और लोग बढ़-चढ़कर बोली लगा रहे हैं । “

”बोली लग रही है न! लगने दो, दाम का पता चलने दो !”

”तो क्या आप मुझसे बढ़ा-चढ़ा दाम लेंगे?”

” और नहीं तो क्या ?” मुंहफट जवाब से छोटा अवाक रह गया ।

” रिश्तों का भी कोई ख्याल नहीं ? ” छोटे की विकलता बढ़ गई थी।

” रिश्ते अपनी जगह, रुपया अपनी जगह !” बड़े की बात में मुकरने की आहट भी थी और सर्द होते रिश्तों की बानगी भी ।

” रिश्तों की ऊष्मा से मन को ठंडक पहुंचाने वाला समय गया ! उधर महासागरों में घुली ऊष्मा से महासागर गर्म हो रहे हैं और ग्लेशियर पिघल रहे हैं, इधर रिश्ते ठंडे पड़ते जा रहे हैं और मन तपन महसूस करने लगे हैं ।’ यह सोचकर छोटे ने अपनी अपेक्षाओं को किनारे रखकर रिश्तों की ऊष्मा को बनाए रखने की ठान ली और मुस्कुराकर बड़े भाई को प्रणाम कर बोली लगानेवालों की भीड़ में शामिल हो गया । उसे रिश्तों में गर्माहट बरकरार जो रखनी थी ।

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “रिश्तों की ऊष्मा

  • लीला तिवानी

    रिश्तों की ऊष्मा मन को ठंडक पहुंचाती है. कोरोआ के चलते लॉकडाउन के इस विकट समय में हमें घर में रहते हुए, फासला रखते हुए सुरक्षित रहने का प्रयास करना होगा और रिश्तों की गर्माहट से मन को ठंडक पहुंचानी होगी, भावनात्मक एकता बढ़ानी होगी, नया-नया सृजन कर समय का सदुपयोग करना होगा और देश का साथ देना होगा.

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