रिश्तों की ऊष्मा
”भैय्या, ये मैं क्या सुन रहा हूँ ! आप खेत मुझे देने के बजाय किसी और को दे रहे हैं ?” छोटे के स्वर में मायूसीजनित शिकायत थी ।
”तो ! और तुमसे ये किसने कह दिया कि खेत किसी और को दे रहा हूँ ? खेत की बोली लगवा रहा हूँ । जो अधिक पैसे देगा खेत उसका ! ”
” लेकिन आपने तो मुझे देने का वायदा किया था और लोग बढ़-चढ़कर बोली लगा रहे हैं । “
”बोली लग रही है न! लगने दो, दाम का पता चलने दो !”
”तो क्या आप मुझसे बढ़ा-चढ़ा दाम लेंगे?”
” और नहीं तो क्या ?” मुंहफट जवाब से छोटा अवाक रह गया ।
” रिश्तों का भी कोई ख्याल नहीं ? ” छोटे की विकलता बढ़ गई थी।
” रिश्ते अपनी जगह, रुपया अपनी जगह !” बड़े की बात में मुकरने की आहट भी थी और सर्द होते रिश्तों की बानगी भी ।
” रिश्तों की ऊष्मा से मन को ठंडक पहुंचाने वाला समय गया ! उधर महासागरों में घुली ऊष्मा से महासागर गर्म हो रहे हैं और ग्लेशियर पिघल रहे हैं, इधर रिश्ते ठंडे पड़ते जा रहे हैं और मन तपन महसूस करने लगे हैं ।’ यह सोचकर छोटे ने अपनी अपेक्षाओं को किनारे रखकर रिश्तों की ऊष्मा को बनाए रखने की ठान ली और मुस्कुराकर बड़े भाई को प्रणाम कर बोली लगानेवालों की भीड़ में शामिल हो गया । उसे रिश्तों में गर्माहट बरकरार जो रखनी थी ।
रिश्तों की ऊष्मा मन को ठंडक पहुंचाती है. कोरोआ के चलते लॉकडाउन के इस विकट समय में हमें घर में रहते हुए, फासला रखते हुए सुरक्षित रहने का प्रयास करना होगा और रिश्तों की गर्माहट से मन को ठंडक पहुंचानी होगी, भावनात्मक एकता बढ़ानी होगी, नया-नया सृजन कर समय का सदुपयोग करना होगा और देश का साथ देना होगा.