मैं तुझसा नहीं बनना चाहती हूं
मां तू है ममता की मूरत ,
तुझसे मिलती है मेरी सूरत ।
तेरे आंचल में बीता बचपन ,
तुझसे जुड़ी है दिल की धड़कन।
प्यार करती हूं तुझसे बेहद,
पर मैं तुझको बतलाना चाहती हूं…
मैं तुझसा नहीं बनना चाहती हूं ।।
मौन रही तू गुड़िया के जैसी,
पिसी काम में, कठपुतली हो जैसी।
दादा थे तुझे, “देवी” बोलते,
पर देवी के लिए, कभी मुंह तो खोलते ।
मानती हूं मैं, इसको अन्याय …
और मैं अन्याय नहीं सहना चाहती हूं…
मैं तुझसा नहीं बनना चाहती हूं ।।
छोटो- बड़ों का आदर करती,
झोली दूजों की, रही सदा ही भरती ।
मुश्किलों में जिनका साथ निभाया,
बदले में उन्होंने ही , उलटा सुनाया ।
चाहती हो तुम मैं उन्हें माफ कर सकूं,
पर मैं स्मृतियों को दफन नहीं करना चाहती हूं …
मैं तुझसा नहीं बनना चाहती हूं ।।
तेरा अंश हूं, संस्कार है तेरे
पूरे करुंगी, जो कर्तव्य हैं मेरे ।
पर… विरोध “गलत” का खुलके करुंगी
पक्षपात को, मैं ना सहूंगी।
समझाना बस चाहती हूं तुझको
मैं त्याग की मूर्ति नहीं बनना चाहती हूं…
मैं तुझसा नहीं बनना चाहती हूं ।।
अंजु गुप्ता