वतन के लिए
कभी जुदाई लगती थी ज़हर
अब फ़ासले ज़रूरी है
जीने के लिए
दर्द तो होता है दिल में मगर
हैं अब दूरियां लाज़मी
अपनों के लिए
छूट न पाएगी कभी वो डगर
बढ़े हैं जिस पर क़दम
वतन के लिए
:- आलोक कौशिक
कभी जुदाई लगती थी ज़हर
अब फ़ासले ज़रूरी है
जीने के लिए
दर्द तो होता है दिल में मगर
हैं अब दूरियां लाज़मी
अपनों के लिए
छूट न पाएगी कभी वो डगर
बढ़े हैं जिस पर क़दम
वतन के लिए
:- आलोक कौशिक