कविता

वतन के लिए

कभी जुदाई लगती थी ज़हर
अब फ़ासले ज़रूरी है
जीने के लिए

दर्द तो होता है दिल में मगर
हैं अब दूरियां लाज़मी
अपनों के लिए

छूट न पाएगी कभी वो डगर
बढ़े हैं जिस पर क़दम
वतन के लिए

:- आलोक कौशिक 

आलोक कौशिक

नाम- आलोक कौशिक, शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य), पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन, साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित, पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101, अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com