साहित्य के संकट
संकट साहित्य पर
है बड़ा ही घनघोर
धूर्त बना प्रकाशक
लेखक बना है चोर
भूखे हिंदी के सेवक
रचनाएं हैं प्यासी
जब से बनी है हिंदी
धनवानों की दासी
नकल चतुराई से
कर रहा कलमकार
हतप्रभ और मौन
है सच्चा सृजनकार
प्रकाशन होता पैसों से
मिलता छद्म सम्मान
लेखक ही होते पाठक
करते मिथ्याभिमान
:- आलोक कौशिक