ग़ज़ल – *शुक्रिया*
परवर दिगार राह दिखाने का शुक्रिया |
बुझते चराग फिर से जलाने का शुक्रिया |
मज़हब की बात छोड़ जो जीते हैं देश हित-
ऐसे वतनपरस्त जमाने का शुक्रिया |
ड्रैगन ने मचाई है तबाही जहान में-
मिल कर के आज देश बचाने का शुक्रिया |
मोदी सा दूरदर्शी न देखा जहान में-
आगाह मुश्किलों से कराने का शुक्रिया |
जो रोग बांटते फिरे बैठे जमात में-
रातों की नींद चैन उड़ाने का शुक्रिया |
इनकी कसो लगाम अगर देश से है प्यार –
हैवान दरिंदों को मिटाने का शुक्रिया |
दूरी बना के रह रहे जो देश भक्त हैं-
रह दूर – दूर दिल मे बसाने का शुक्रिया |
संकल्प सत्य साथ तो होंगे जई ज़रूर-
हर बात पे यह बात बताने का शुक्रिया |
कहती दरो दीवार है होगी नई सुबह-
उम्मीद का ये बाग लगाने का शुक्रिया |
है जान से जहान रहो घर पे इस लिये-
बस सत्य एक यही है बताने का शुक्रिया |
फिर गुल ‘मृदुल’खिलेंगे बागे बहार में |
पलकों हंसी ख्वाब सजाने का शुक्रिया |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’