गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – *शुक्रिया*

परवर दिगार राह दिखाने का शुक्रिया |
बुझते चराग फिर से जलाने का शुक्रिया |

मज़हब की बात छोड़ जो जीते हैं देश हित-
ऐसे वतनपरस्त जमाने का शुक्रिया |

ड्रैगन ने मचाई है तबाही जहान में-
मिल कर के आज देश बचाने का शुक्रिया |

मोदी सा दूरदर्शी न देखा जहान में-
आगाह मुश्किलों से कराने का शुक्रिया |

जो रोग बांटते फिरे बैठे जमात में-
रातों की नींद चैन उड़ाने का शुक्रिया |

इनकी कसो लगाम अगर देश से है प्यार –
हैवान दरिंदों को मिटाने का शुक्रिया |

दूरी बना के रह रहे जो देश भक्त हैं-
रह दूर – दूर दिल मे बसाने का शुक्रिया |

संकल्प सत्य साथ तो होंगे जई ज़रूर-
हर बात पे यह बात बताने का शुक्रिया |

कहती दरो दीवार है होगी नई सुबह-
उम्मीद का ये बाग लगाने का शुक्रिया |

है जान से जहान रहो घर पे इस लिये-
बस सत्य एक यही है बताने का शुक्रिया |

फिर गुल ‘मृदुल’खिलेंगे बागे बहार में |
पलकों हंसी ख्वाब सजाने का शुक्रिया |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016