मुक्तक/दोहा

मुक्तक

तिरंगा
फर फर  फहरा  खूब  तिरंगा।
जन जन का  महबूब  तिरंगा।
इसकी अज़मत सबसे आला,
भारत   का   मतलूब  तिरंगा।
क़ातिल
रूप  बदलकर  आया क़ातिल।
दहशत भर कर लाया क़ातिल।
मौत  बना   जो   घूम   रहा  है,
जर्जर सी  है   काया  क़ातिल।
 वाइरस
हर किसी को नहीं  हम ख़ुदा मानते।
वाइरस  को महज़  इक वबा मानते।
हो गया कुलजहां आज दहशतज़दा,
मर्ज़ सब  सेर इस  को सवा  मानते।
 रिवायत
पुरानी      रिवायत    हटानी   पड़ेगी।
रिवायत   नयी  इक   बनानी  पड़ेगी।
मुहब्बत मुहब्बत मुहब्बत  हो जिसमें,
सियासत  नयी अब  चलानी  पड़ेगी।
— हमीद कानपुरी

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - [email protected] मो. 9795772415