एैसी नींद बताओ कोई…….
रात की बेहोशी का तुम, नींद जैसा नाम न दो
ग़म सारे गायब हो जायें, एैसा कोई जाम न दो
रात की बेहोशी का तुम…………………
दर्द बहुत मिलते हैं दिन में, रात को मुर्छा आ जाती
बंजर में हरियाली भर दे, एैसी बरखा आ जाती
शाम से सब सो जाते हैं, एैसा कह के रूलाओ न-
पल भर में मिट जाये जो, एैसा कोई काम न दो
रात की बेहोशी का तुम…………………
जागना है इस जग में, रातों को आने जाने दो
दर्द से सब जिंदा हैं अभी, खुशियाँ इनको मनाने दो
बेहोशी के छटने से, इक सफर नया मिल जाता है –
पल भर में जो मिल जाये, एैसा कोई धाम न दो
रात की बेहोशी का तुम…………………
पंक्षी के कलरव सुनना है, नया सवेरा देखना है
अब तक जो पौधे रोपे हैं, उन्हे घनेरा देखना है
नींद का अपना (राज) कोई है, चार लोग लेकर चलते
एैसी नींद बताओ कोई, जिसमें राम का नाम न हो
रात की बेहोशी का तुम…………………
राज कुमार तिवारी (राज)