गीतिका
अजीब सी दोराहे पर खड़ी है ज़िदगी।
थकी है ..आगे जाने को अड़ी है ज़िंदगी।।
है राह में न रौशनी, न हाथ में मशाल है
पर हर अधेंरी मोड़ पर लड़ी है ज़िंदगी ।।
जितना दिया है हमनें इस जहान में कभी
मिलेगा वहीं हाथ .. ये कड़ी है ज़िंदगी।।
दुआ में माँग ली थी माँ के पाँव की जमीं
मिला सुकून वहींं … वहीं पड़ी है ज़िदगी ।।
भीगे हो आँख, होठ पर मुस्कान सजा लो
जियोगे इस तरह तो फिर बड़ी है ज़िंदगी।।
— साधना सिंह