मुक्तक/दोहा

मानवता

मुझे सिखाने वो चले,मानवता का पाठ ,
दीनों का धन लूट के,जो करते हैं ठाठ।
—-
मानवता का पाठ है,या कटुता का घोल,
जिसने भी सीखा इसे,वो बोले कटु बोल।
—-
मानवता के पाठ पे ,तब वो देते जोर,
जब उनको आती दिखें,विपदाएँ घनघोर।
—–
मानवता के पाठ का,सबसे बड़ा उसूल,
दूजों की विपदा हरो,अपने दुख को भूल।
—-
टीचर ने जम कर जड़े,उसे तमाचे आठ,
याद हुआ जिसको नहीं,मानवता का पाठ।

दुर्जन को देना नहीं,मानवता का पाठ,
दानवता से चलत है,उसके सारे ठाठ।

मानवता के पाठ का,करना नहीं बखान,
जिस दफ्तरमें रहत हैं,रिश्वत खोर महान।

— महेंद्र कुमार वर्मा

महेंद्र कुमार वर्मा

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