मानवता
मुझे सिखाने वो चले,मानवता का पाठ ,
दीनों का धन लूट के,जो करते हैं ठाठ।
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मानवता का पाठ है,या कटुता का घोल,
जिसने भी सीखा इसे,वो बोले कटु बोल।
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मानवता के पाठ पे ,तब वो देते जोर,
जब उनको आती दिखें,विपदाएँ घनघोर।
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मानवता के पाठ का,सबसे बड़ा उसूल,
दूजों की विपदा हरो,अपने दुख को भूल।
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टीचर ने जम कर जड़े,उसे तमाचे आठ,
याद हुआ जिसको नहीं,मानवता का पाठ।
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दुर्जन को देना नहीं,मानवता का पाठ,
दानवता से चलत है,उसके सारे ठाठ।
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मानवता के पाठ का,करना नहीं बखान,
जिस दफ्तरमें रहत हैं,रिश्वत खोर महान।
— महेंद्र कुमार वर्मा