लघुकथा

संसाधनों का रोना

आज प्रशासन के मुखिया की रिपोर्ट भी कोरोना संक्रमित की आ गई थी।स्थानीय सरकारी अस्पताल के डॉक्टर और अन्य मेडिकल अमला सीमित संसाधन होने के बाद भी पूर्ण रूप से अन्य मरीजों के साथ उनकी सेवा सुश्रुषा में लगा हुआ था ।उन्हें डॉक्टरों के स्वर सुनाई दे रहे थे-“क्या करें संसाधनों की कमी तो है ही और स्थिति भी बिगड़ती जा रही है लेकिन फिर भी हम इन्हीं संसाधनों के बलबूते यह जंग अंततः जीत ही लेंगे।”
उधर प्रशासन प्रमुख को तीन महीने पहले अस्पताल के निरीक्षण के दौरान की बात याद आ गई जब उन्होंने डॉक्टर, नर्स सहित समस्त स्वास्थ्य अमले की खिंचाई करते हुए अस्पताल की अव्यवस्था के लिए लताड़ लगाते हुए कहा था कि आपके पास बहानेबाजी के अलावा कोई काम नहीं है।हमेशा संसाधनों का रोना रोते रहते हैं ।
आज उस दिन की घटना याद करते समय उनकी आँखें नम थीं।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009