अजी अदब से
अजी अदब से आज फिर लो मुस्कुराया गया।
दर्द लिखा गया और लिख के गुनगुनाया गया।।
समन्दर आँख का सारा, उड़ेला कागज़ पर।
इस तरह ज़ख्म-ए-रूह यार था सहलाया गया।।
थी रंजिशें बहुत साजिश-ओ-सरहद फिर भी।
सवाल आया-गया और जवाब आया-गया।।
बड़ी शिद्दत से फिर आने का गुमाँ है तेरे।
बड़ी उम्मीद से इस घर को फिर सजाया गया।।
बहुत गुरूर था रग रग में शख्सियत में मगर।
जहाँ ज़रूरी था उस दर पे सर झुकाया गया।।
डॉ मीनाक्षी शर्मा