गीतिका
दुनिया भर मे कोरोना के, देखो नखरे न्यारे हैं
सहमी -सहमी लगे जिन्दगी, सहमे चाँद सितारे हैं
आना -जाना बंद हुआ है, सैर -सपाटे छूट गए
नदिया रोती, सागर रूठा, टूटे सभी किनारे हैं
हाथ मिलाना छोड़ गए सब, नमस्कार की जै-जै है
रिश्तों में दूरी-मजबूरी, मित्र सभी बेचारे हैं
साँस -साँस भारी जीवन पर मगर रोग से लड़ना है
हार गए यदि हिम्मत , समझो, सारी बाजी हारे हैं
आशाओं का दीप जला कर हमें प्रतीक्षा करनी है
होगी सुबह, सदा कब रहने वाले ये अँधियारे हैं
कभी किसी के यहाँ नहीं,दिन सदा एक से रहते हैं
अधरों पर मुस्कान मधुर, आँखों में आँसू खारे हैं
— शुभदा बाजपेई