बैठ मत यूँ मुश्किलों से हार कर
बैठ मत यूँ मुश्किलों से हार कर।
उठ चुनौती वक्त की स्वीकार कर।।
कौन जाने भाग्य में विधि ने लिखा है क्या किसी के।
क्या पता किस पल बदल जाएं बुरे पल आदमी के।।
हार से मत बैठ यूँ मन मार कर…
उठ चुनौती वक्त की स्वीकार कर…
मुक्त हो जा तोड़ कर पग रोकते सब बंधनों को।
पार कर जा भय निराशा और शंका के दरों को।।
वार ही तय है अगर तो वार कर…
उठ चुनौती वक्त की स्वीकार कर…
चाह की प्यासी धरा को प्यार सागर का मिलेगा।
पत्थरों के बीच में भी देखना जीवन पलेगा।।
जीत पाया कौन मन से हारकर…
उठ चुनौती वक्त की स्वीकार कर…
ज़िन्दगी में चल रहा जो घोर विपदा का समय है।
तू समझता क्यूँ नही तेरी परीक्षा का समय है।।
कर्म से अधिकार पर अधिकार कर…
उठ चुनौती वक्त की स्वीकार कर…
— सतीश बंसल