बचपन की साथी पुस्तक मेरी
जिसने किया भविष्य निर्माण
मिला न इससे अच्छा मित्र
ढूंढ लिया दुनिया जहान।
शब्द बहुत छोटा है पुस्तक
पर संवाहक जीवन की
मानसिक रूप से सक्षम बनाकर
बुद्धि विवेक का दायरा बढ़ाती।
ज्ञान भंडार भरा है इसमें
करती व्यक्तित्व का निर्माण
व्यवहार कुशल बनाकर के
मानवता को देती सम्मान।
दिखाकर रूप हर चेहरे का
खोलती देश दुनिया के द्वार
दोष दिखाकर इस समाज के
देती संभलने की शक्ति अपार।
जिज्ञासा को शांत करती
सहायक होती व्यवस्था में
देकर पाठकों के कड़े उत्तर
हितैषी हो लक्ष्य निर्धारण में।
हो सामान्य या मनोरंजक
सभी बंधु हैं मानव की
लेकर रूप शब्दकोश का
देती अद्भुत धूप ज्ञान की।
बने पुस्तकालय घर-घर में
प्रज्जवलित ज्ञान की ज्योति हो
न रहे कोई वंचित इससे
सबके हिस्से में मोती हो।
— निशा नंदिनी भारतीय