कविता

आपातकाल और श्रमिक

आज के हाल, हुए बेहाल
और ये आपातकाल !
कितना बेबस है वो श्रमिक
रोज कमाकर खानेवाला है
और,,
अकेला है अपने परिवार का
करने वाला भरण-पोषण!

आज समय की माँग को देखते हुए,
जो आपातकाल जैसी
स्थिति  हुई है उतपन्न!
जिसने तोड़ दी है उस श्रमिक की कमर,

जो बिना रोजगार के बैठा है निराश
उस सोच-विचार में,

कि कब ये आपातकाल हटेगा
और वो कब पेटभर भोजन
सुकून से खिला पायेगा
अपने परिवार को!

— सपना परिहार

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।