ग़ज़ल
मुहब्बत में इतना जो तड़पाओगे तुम
फ़क़त दुश्मनों में गिने जाओगे तुम
जो तन्हाइयों में सिमट जाओगे तुम
तो एक रोज़ खुद से ही घबराओगे तुम
निगाहों से ओझल जो हो भी गए तो
मेरे दिल से कैसे निकल पाओगे तुम
ए मेरे गमों बस मुझे फिक्र ये है
अगर मुझसे बिछड़े कहाँ जाओगे तुम
चलो हम भी देखें ये नफरत ये वहशत
अभी कितने दिन और फैलाओगे तुम
हंसो मुस्कुराओ ख़बर किसको कल की
जिओगे जो कल पे तो पछताओगे तुम
किसे जुस्तजु मन्ज़िलों की रहेगी
अगर हमसफ़र मेरे हो जाओगे तुम
मैं शम्मा हूँ मेरे ना नज़दीक आना
जो मुझको छुओगे तो जल जाओगे तुम
मेरी धड़कने हैं तराना तुम्हारा
सुनोगे इन्हें और दोहराओगे तुम
— नमिता राकेश
बहुत शानदार गजल !