राजनीति

बेरोजगारी का समाज शास्त्र

जनसंख्या वृद्धि से उपजी बेरोजगारी कोई समस्या नहीं है । यह अनियंत्रित , असंगत , श्रम नियोजन  ,अयोग्यों व अपात्रों के सेवा में चयन तथा दूषित ,  लक्ष्यहीन शिक्षा नीति का परिणाम है । विगत वर्षों से समाज में यह धारणा बलवती होती गई कि सरकारी सेवा में चयन ही “रोजगार” है । यह धारणा इसलिए भी पुष्ट होती गई क्योंकि असंगत व जातिगत आरक्षण ने सरकारी नौकरियों को सामान्य जातियों से बहुत दूर कर दिया है । वही लिंग आधारित आरक्षण का प्रभाव भी सामान्य जाति के पुरुषों पर ही पड़ा है ।
बेरोजगारी बढ़ाने में लक्ष्य हीन शिक्षा नीत का दोष यह है कि इसने शिक्षा का बाजारीकरण कर दिया है । शिक्षा के बाजारीकरण से तमाम डिग्रियां बेचने वाली दुकानें गांव गांव तथा नगर नगर में खुल गई । तमाम अयोग्य व असंस्कृत लोग भी धनबल से डिग्री धारक हो गए और ऐसे लोग उन नौकरियों के लिए भी आवेदन करने लगे जोकि उनके रुचि प्रभाव वह क्षमता के अनुकूल नहीं थे। शिक्षा का बाजारीकरण इसलिए भी खूब फला फूला क्योंकि अधिकतर शिक्षण संस्थान नेताओं अधिकारियों तथा सरकार व राजनीतिक दलों से जुड़े उद्योगपतियों व पूंजीपतियों के हैं । सुलभता से प्राप्त होने वाली डिग्रियां तथा आरक्षण के सहारे मिलने वाली नौकरियों की लालच ने शिक्षा व्यवसाय को बढ़ाने में खाद का काम किया ओर यह फैलता चला गया ।
धन द्वारा सुगमता व सुलभता से प्राप्त होने वाली शिक्षा ने डिग्रियों की महत्ता समाप्त कर दी है  । उच्च डिग्री धारकों ने छोटी नौकरियों पर कब्जा करने में कोई संकोच नहीं किया । वह निर्लज्जता अपने से कमजोरों की नौकरियों  को हड़पने मे ही श्रेष्ठता समझने लगे । लोगों में यह सोच नैतिक मूल्यों से रहित शिक्षा तथा उसके बाजारीकरण का परिणाम है । डॉक्टर इंजीनियर जैसे सम्मानित व उच्च डिग्री धारक भी अपने शिक्षा के स्तर से नीचे जाकर सरकारी विभागों में बाबू गिरी तथा प्राइमरी में अध्यापक व अन्य तृतीय श्रेणी की नौकरियों को अपनाने में कोई परहेज नहीं किया है । मौके से मिली नौकरी पाए हुए यह  लोग मौका पाकर अन्य दूसरी नौकरियों में भी चले गए और इनके द्वारा खाली किए गए  पदों पर  नवीन भर्तियां  प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण  नहीं हुई  इससे  भी बेरोजगारी  में वृद्धि हुई ।
भारत में बेरोजगारी बढ़ाने में आरक्षण का भी अपना योगदान है वांछित योग्यता धारी आवेदकों के अभाव में तमाम पदों की रिक्तियां केवल इस कारण शेष रह जाती हैं की योग्यताधारी  बेरोजगारों की जातियां सरकारी मापदंडों के अनुरूप नहीं होती है । आरक्षण की विकृतता केवल जाति के ही शोषण पर समाप्त नहीं होती है वह लिंग के आधार पर भेदभाव कर श्रम नियोजन को प्रदूषित करती हैं तथा बेरोजगारी बढ़ाती हैं ।
आरक्षण में योग्यता को गौण करके जाति व लिंग को  वरीयता देने का दुषपरिणाम यह है कि कुपात्रों तथा अपात्रों के कारण योग्य व जरुरतमंद ब्यक्तियों से ना केवल अन्याय पूर्वक रोजगार छीना जा रहा है अपितु कार्य की कुशलता वह गुणवत्ता भी प्रभावित दूषित हो रही है । जातिगत आरक्षण ने परंपरागत उद्योगों और जातिगत व्यवसायों को भी प्रभावित किया है । बहुत से व्यवसाय हीन भावना तथा सहानुभूति एवं संरक्षण ना मिल पाने के कारण लुप्त हो गए हैं । जातिगत और परम्परागत ब्यवसाइयों के सरंक्षण और सवंर्धन के लिए सरकार ने कभी कोई सार्थक प्रयास नहीं किया । तमाम जातिगत पेशा वाले लोग  हीन भावना से अपने रोजी रोजगार छोडकर और थोड़ी बहुत पढाई लिखाई करके बेरोजगारों की भीडभाड़ मे शामिल हो गए ।
महिलाएं समाज और परिवार का आधार है । पुरुष परिश्रम करके धन कमाता था और महिलाएं सहज रूप से घर चलाती थीं । स्वस्थ व संस्कारित नागरिक का निर्माण माता द्वारा ही संभव  है । स्त्री और पुरुष परिवार रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं किंतु लिंग आधारित आरक्षण की नींति ने महिलाओं को पुरुषों के प्रतिद्वंदी के रूप में बाजार में खड़ा कर दिया है । महिलाओं को सशक्त करने के नाम पर पुरुषों के हक की नौकरियां उनसे छीनी जा रही हैं । जिन क्षेत्र में पुरुषों के बल व कौशल का अपना महत्व है उन नौकरियों में भी जबरदस्ती महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान कर दिया गया है ।
महिला आरक्षण का प्रत्यक्ष नुकसान यह है कि सामर्थ्य और योग्य आवेदकों को अनित पूर्वक वंचित कर दिया जाता है जिससे उस क्षेत्र की कार्य दक्षता व गुणवत्ता दूषित हो जाती है । पिता तथा पति किसी भी स्त्री के नैसर्गिक व विधि संरक्षक होते हैं । उनकी रक्षा व आवश्यकताओं की पूर्ति करना उनका नैतिक और धार्मिक कर्तव्य है । यदि महिला रोजगार में नहीं है तब भी वह गृह कार्य करते हुए अपने पति व पुत्रों के साथ सुखमय जीवन ब्यतीत कर सकती है जबकि यह एक रोजगार विहीन पुरुष के साथ संभव नहीं है । पत्नी रोजगार में तब भी एक स्वस्थ पुरुष का घर पर बैठे रहना सामाजिक व नैतिक दृष्टि से ठीक नहीं कहा जा सकता  है । पुरुष अपने संस्कार गत , स्वभाव वश उस रीत से घर परिवार नहीं चला सकता है जैसा कि एक स्त्री   चलाती है ।
प्रकृति ने लिंग विभेद के आधार पर ही कई विशेषताएं और निम्नताएं जीव धारियों को प्रदत किया है ताकि सृष्टि व समाज के संचालन में बाधा न पहुंचे । इस सदी के प्रारंभिक वर्षों तक समाज और सरकार हैं इन परंपराओं का पालन करती थी , लेकिन भौतिकता की पराकाष्ठा व गिरते नैतिक मूल्यों के कारण महिलाएं सहज ही पूंजीवाद का आखेट हो गई । स्वतंत्रता की मृगमरीचिका मे फंसकर महिलाएं घरों से बाहर निकल रहीं हैं । रोजगार तथा अपने पैरौं पर खड़े होने की लालच में यह स्वतंत्रता कब स्वच्छता में बदल जाती है पता ही नहीं चलता है । आधुनिकता की लक्ष्यहीन दौड़ और अधिक धन कमाने की लालच में पति पत्नी दोनों घर से बाहर रहते हैं तथा उनके अनचाहे समझौतों की वजह से परिवार टूट कर बिखर रहे हैं । माता पिता की निजी महत्वाकांक्षाओं मे शिशुओं का पालन पोषण प्रभावित हो रहा है। देर रात की संस्कृति से सामाजिक परिवेश भी दूषित हो रहा है ।
पति पत्नी दोनों का व्यवसायिक होना आज समाज में फैशन बनता जा रहा है तमाम परिवार ऐसे हैं जहां पर पत्नी दोनों सेवा में हैं । लोग अपनी संतानों का विवाह उसी क्षेत्र में ही कार्यरत स्त्री पुरुष से करना पसंद करते हैं । लिंग आधारित आरक्षण इस कुरीति को पनपने में सहायक सिद्ध हो रहा है पति पत्नी दोनों का सेवा में होना असंतुलित श्रम नियोजन का एक उदाहरण है
आज समाज में पनप रहे अपराध व भ्रष्टाचार सरकार की इन्हीं दूरदर्शिता उनके परिणाम हैं सरकार चाहे तो अपनी नीतियों में थोड़ा बहुत परिवर्तन करके काफी हद तक बेरोजगारी पर नियंत्रण कर सकती हैं सरकारी सेवा में चयन पात्र व जरूरतमंद व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के करना चाहिए । महिला सशक्तिकरण के नाम पर जबरदस्ती लिंग आधारित आरक्षण के जरिए महिलाओं की नियुक्ति से बचना चाहिए । महिलाओं की जरूरत जैसे सेना अर्धसैनिक बलों नहीं है वहां उनको जबरदस्ती  केवल महिला सशक्तिकरण के नाम पर भर्ती नहीं किया जाना चाहिए । आसामान दशाओं में पति तथा पत्नी दोनों को सरकारी सेवा में नहीं रखा जाना चाहिए । कृषि व परंपरागत उद्योगों तथा जाति आधारित व्यवसायों के पुनरुद्धार के लिए सरकार को सरल और स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिए शिक्षा के व्यवसायिक वह फाइव स्टार कल्चर को राष्ट्रहित में समाप्त किया जाना चाहिए शिक्षा को संस्कार गत तथा जन सुलभ समान बनाया जाना चाहिए । सरकार को बढ़ती आबादी को समस्या मानने के बजाय उसके श्रम तथा बल  का उचित रूप में उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए
—  सुरेन्द्र मिश्र सूर्य

सुरेन्द्र मिश्र सूर्य

शिक्षा... एम. ए. एल एल. बी. सम्प्रति.... अधिवक्ता हाईकोर्ट प्रयागराज लखनऊ बेंच स्वतंत्र भारत , राष्ट्र धर्म व अन्य पत्र पत्रिकाओं में बिभिन्न विषयों पर लेख प्रकाशित पूर्व संपादक . अवध प्रहरी पाक्षिक 543 आवास विकास कालोनी गोंडा उत्तर प्रदेश मो. 9450555882

One thought on “बेरोजगारी का समाज शास्त्र

  • सुरेन्द्र मिश्र सूर्य

    आप सभी के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में….
    आपका
    सुरेन्द्र मिश्र सूर्य

Comments are closed.