गीतिका प्रदत्त छंद
छंद- चामर (वार्णिक)
मापनी- 212 121 212 1,21 212
पदांत- हो गया.
समांत- आन
212 121 212 1,21 212
राम राज का समाज ले निशान हो गया।
आज ये सभी कहें भला मकान हो गया।।
जान शरण के करीब सा मुरीद हो गया।
करन आस में ढला बना महान हो गया।।
एक बुढा तड़फ रहा दिखा यतीम सा हुआ
प्रभु मदद करें दलील दरमियान हो गया।।
बहुत से मिले गरीब या अमीर से यहाँ
सोच वास्ता अजीब ले कमान हो गया।।
यातना सहें नही बचाव ही बिहान है
सोचता किसान अब यहाँ बड़ा ऊगे फले
यातना सहें नही ठहर बिहान हो गया।।
वक्त आपदा टले समाज देश चाहता,
क्यों अकाल मृत्यु खबर सुन सुनान हो गया.
हैं चुनौतियाँ घनी सतर्क अभी हुए उड़ी,
खो न दें कई विरासतें बड़ा दफन हो गया .
स्वरचित –रेखा मोहन २6/४/२०