कविता

घर वास का तैंतीसवां दिन

आज घर वास का तैंतीसवां दिन है ।
तैंतीस कोटि देवी देवताओं को ,
समर्पण के ये दिन है ।।
क्रमशः जड़, वृक्ष, प्राणी, मानव, पितर ,
देवी-देवता, भगवान और ईश्वर ।
सबसे बड़ा ईश्वर ,
परमात्मा या परमेश्वर ।।
वेदों में जिस ब्रह्म का जिक्र है ,
उसका अर्थ है विस्तार, फैलना ,
अन्नत, महाप्रकाश ।
वास्तव में देवी-देवताएं तैंतीस कोटि ,
अर्थात प्रकार के हैं ।
तैंतीस प्रकार में से आठ वसु है ।
क्रमश: धरती, जल, अग्नि, वायु,
आकाश, चंद्रमा, सूर्य और नक्षत्र ।
प्रजा को बसाने वाले ये आठ वसु है ।।
इन तैंतीस प्रकार में से ग्यारह रूद्र है ।
ये शरीर के अव्यय है ,
क्रमशः
प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान ।
अत: ये पाँच शरीर के प्राण हैं ।।
क्रमश:
नाग, कुर्म, किरकल, देवदत्त और धनंजय
अत: ये पाँच शरीर के उपप्राण है ।
अंत में ग्यारहवां जीवात्मा है ।
यही शरीर की आत्मा है ।।
इन तैंतीस प्रकार में से
बारह आदित्य होते है ।
जिसको हम सूर्य कहते है ।।
बारह माह को ही
बारह आदित्य कहते है ।।
बतीसवां इन्द्र है ।
इंद्र का अर्थ बिजली या उर्जा ।।
तैंतीसवां यज्ज है अर्थात प्रजापति ।
जिसमें आयु, दृष्टि, जल और शिल्प ।।
यही तैंतीस कोटि अर्थात प्रकार ।
यही है हमारे देवी देवताओं के संसार ।।
— मनोज शाह ‘मानस’ 

मनोज शाह 'मानस'

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