रचना
जब मैं रोने ही वाली थी
पर मैं रोई नहीं
वो समय बड़ा निष्ठुर रहा होगा
क्योंकि मैं जब हँसना चाहती हूँ खुल कर
हँस भी कहाँ पाती हूँ
सुनो तुम…..
इन बातों को आतुरता से मत लेना
ये हल्की फुल्की बातें हैं
बस जरा सी राहतें हैं
तुम पढ़ कर रह जाना
मैं लिखकर रह जाऊंगी
वैसे कोई और कर भी क्या लेगा …
ये लिखा रोमानी नहीं सुंदर भी नहीं
प्रखर बौद्धिक शालीन भी नहीं
क्यों आपको अपनी ओर खींचे भला
फिर भी तुम ..हाँ तुम पढ़ लो इसे
ये अपार सुख…..
की नीले रंग में लाइक
के लायक ये महान रचना बन फुसफुसा कर
रह जाएगी …..
ये ही विजय होगी
हाँ सूखे फूलों के बीच एक नन्ही तितली होगी
— अंजलि मनीष शर्मा