भीख
‘युवा दिवस’ के दिन समाचार पत्र में एक युवक का ह्रदयविदारक समाचार पढ़ने को मिला. धनंजय नाम का यह युवक करोड़पति था. नशे की आदत के कारण उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ गई और एक दिन घर छोड़ गया. तब से घरवाले उसे खोज रहे थे और वह दो साल से एक मंदिर के सामने भीख मांग रहा था. इस समाचार ने मुझे दो युवाओं की विशेष याद दिला दी.
”हमें भी उन युवकों से मिलवा दीजिए.” शायद किसी के मन की आवाज थी.
”जरूर. पहले युवक का घर का नाम नरेंद्र दत्त था. उनके पिता विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे. वे अपने पुत्र नरेंद्र को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे. भारतीय सभ्यता के साधक नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी. सच्चे गुरु की खोज ने उन्हें गुरु परमहंस से मिलवा दिया. परमात्मा को पाने की लालसा हो और परमहंस जैसा गुरु हो, तो आत्म-साक्षात्कार होने में क्या देर लगती! वे नरेंद्र से विवेकानंद हो गए. विवेकानंद यानी विवेक और आनंद. विवेक होगा, तो सच्चा आनंद मिलना स्वाभाविक भी है और संभव भी. फिर उन्होंने 1893 में अमेरिका के शिकागो नगर में जो विश्वधर्म महासभा हुई उसमें समस्त विश्व को भारतीय सभ्यता और संस्कृति का परिचय देकर भारतीय सभ्यता और संस्कृति का परचम लहराया. 39 वर्ष की अल्पायु में स्वामी विवेकानंद का महाप्रयाण हुआ. उनकी स्मृति में उनके जन्मदिन को ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.”
”धन्य है विवेकानंद जैसा शिष्य और राम कृष्ण परमहंस जैसे गुरु! दूसरे युवक से भी हमारा परिचय करवा दीजिए.”
”हमारे दूसरे युवक का नाम है धनंजय.”
”धनंजय तो नशे का आदी था न! वह कैसे विशेष हुआ!” आवाज ने बीच में ही बात काटते हुए कहा.
”जी हां, भले ही उस युवक का नाम धनंजय हो, पर हम जिस विशेष युवक धनंजय की बात कर रहे हैं, वह महाभारत का धनंजय यानी अर्जुन है. इनको भी नशा था, पर वह था जीत का नशा! जीत के नशे के लिए जुनून की आवश्यकता होती है, वह नशा इनमें कूट-कूटकर भरा था. अर्जुन के दस नाम थे, हर नाम के साथ कुछ विशेषता जुड़ी हुई है. अनेक देशों को जीतकर तथा कर रूप में धन का उपार्जन करने के कारण इन्हें धनंजय कहा जाता है.”
”हमने सुना है कि अर्जुन के लक्ष्य की एकाग्रता का कोई सानी नहीं है, यह सच है?”
”बिलकुल सही कहा. हम सब अर्जुन की मछली की आँख पर तीर साधने की कहानी जानते हैं, उनकी आँखें सिर्फ मछली की आँख को ही एकाग्रता से देख रही थी, कुछ और नहीं. इसलिए जहाँ बड़े-से-बड़े धनुर्धर हार गए, वही अर्जुन का तीर सीधे मछली की आँख पर जा लगा. इसीलिए वो अपने गुरु द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य थे.”
”यानी नशे में दोनों धनंजय थे, पर एक को हानिकारक नशा, दूसरे को जीत के जुनून का लाभदायक नशा!” आवाज का निष्कर्ष था.
”बिलकुल दुरुस्त, विवेकानंद को भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रचार-प्रसार का नशा.”
”मेरे पास एक मैसेज आया है- पहले 5 छोड़ने मुश्किल थे, काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार, अब 5 और जुड़ गए हैं फेसबुक-इंस्टाग्राम-ट्विटर-यूं ट्यूब-व्हाट्सअप.” शायद आवाज आज के युवा की थी.
”बिलकुल उसी तरह जैसे पहले नशा केवल बीड़ी-सिगरेट-शराब का था, अब अफीम, गांजा, हेरोइन, पॉर्न और भी न जाने क्या-क्या हो गया है!”
”काश, किसी करोड़पति धनंजय को भीख न मांगनी पड़े!” आवाज मौन हो गई थी.
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चलते-चलते
अर्जुन की जुबानी अर्जुन के दस नाम-
“मेरे दस नाम हैं – अर्जुन, फाल्गुन, जिष्णु, किरीटी, श्वेतवाहन, बीभत्सु, विजय, कृष्ण, सव्यसाची और धनंजय। सब के प्रति सम-भाव रखने के कारण मैं अर्जुन हूं। मेरा जन्म उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्र में होने के कारण मैं फाल्गुन कहलाता हूं।“
इन्द्र का पुत्र
“इन्द्र का पुत्र होने के कारण मैं जिष्णु हूं। वैजयन्त ने मेरे सिर पर मुकुट रखा था इसलिए लोग मुझे किरीटी के नाम से भी जानते हैं। मेरे रथ में श्वेत अश्व होने के कारण मैं श्वेतवाहन कहलाता हूं।“
युद्ध में कोई वीभत्स कर्म नहीं करता
“मैं युद्ध में कोई वीभत्स कर्म नहीं करता, इसलिए मुझे वीभत्सु भी कहते हैं। मैं शत्रु को परास्त किए बिना नहीं लौटता, इसलिए विजय कहलाता हूं। मेरा वर्ण श्यामल है और मैं लोगों के चित्त को आकर्षित कर लेता हूं, इसलिए कृष्ण भी कहलाता हूं।
मेरा नाम सव्यसाची
“सबसे अहम मैं अपने दायें और बाएं दोनों हाथों से ही गांडीव खींचता हूं इसलिए मेरा नाम सव्यसाची भी है। मैं अनेक देशों को जीतकर तथा कर रूप में धन का उपार्जन करने के कारण धनंजय कहा जाता हूं।“
नशा नाश का कारण है, नशा छोड़ना ही नाश का निवारण है