सदानंद पॉल की 7 सारगर्भित कविताएँ
1.
■तीसमार खाँ
वे कर्म के क्षेत्र में
‘वर्ल्ड रिकॉर्ड’ कायम कर लिए,
एक ही बार, एक ही समय, एक ही पंजे से
तीस मक्खियाँ मारकर !
‘लॉकडाउन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में उनके उपनाम
“तीसमार खाँ”
स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गए !
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2.
■मूकदर्शक
‘रामायण’ दर्शकों की सात करोड़ी भीड़ में से
एक दर्शक से दो प्रश्न किया-
मंथरा महान थी या कैकेयी ?
उसने कहा- ये नहीं, तो रामायण नहीं !
दूसरा प्रश्न किया- मंथरा कूटनी थी, तो कूटना कौन थे ?
‘नारद’ कहकर वह अपेक्षा से देखने लगा,
तब एक और प्रतिप्रश्न-
करोड़ों रुपये खर्च कर और मेहनत जाया कर
रामानंद सागर जी ‘नारद’ ही क्यों बने ?
यह सुन वह दर्शक
‘मूकदर्शक’ बन वहाँ खिसक गए !
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3.
■कुत्ते से प्रेरणा
एक मनुष्य ने
एक कुत्ता से प्रश्न किया-
कुत्ते की पूँछ पैदाइश ही टेढ़ी क्यों होती है ?
उस कुत्ता ने जवाब दिया-
वो अपना पिछवाड़ा मनुष्य को दिखा सके,
जिससे कि मनुष्य को कपड़े पहनने का स्मरण रहे,
ताकि बीच चौराहे होनेवाली कुत्ते की अदा को मनुष्य भूले नहीं !
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4.
■सेवा देना या मेवा पाना
मानव की आँख के बदले अगर काँच की लगाएंगे;
तो वो आँख होगी, पर देख नहीं पाएंगे.
कि आदमी के कलेजे के बदले वहाँ,
किसी भी धर्म के पूजास्थलों के प्रतीक लगाएंगे;
तो आदमी क्या जिंदा रह पाएंगे ?
जिसतरह सूर्य का धर्म है- ताप देना, भाप देना.
चंद्रमा का धर्म है- शीतलता देना, ऊष्मा से राहत देना.
धरती का धर्म- अन्न देना, शांत मन देना.
काश ! मानव भी समझते कि मानव का धर्म है-
दुःखी मानवों की सेवा ही करना, कर्मयोगियों की मेवा नहीं छीनना.
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5.
■स्वयं भाग्य लिखूँ और मिटाते जाऊँ
सिर्फ स्नेह लिए शब्द नहीं चाहिए,
क्योंकि इससे पेट नहीं भरते.
आजतक, अलजजीरा, रवीशों को कैसे सुनूँ,
क्योंकि सिर्फ रेडियो ही पास है.
पेट और रेडियो ने मिलकर
रामायण, महाभारत को हमसे दूर कर दिए !
अखबारों ने दगा दिए,
तो नागार्जुन जैसों ने अकाल के बाद कविता रच दिए !
अब तो हमारे पास देने को सचमुच में कुछ नहीं हैं
लेने को मन करता है,
पर स्वाभिमान धमकाते हैं पल-पल
सरकार सिर्फ कामातुर स्त्री की भाँति है,
जो फँसाना जानती है !
तो फिर हमें एक स्लेट-खड़िया दे दो,
ताकि स्वयं भाग्य लिखूँ और मिटाते जाऊँ !
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6.
■हमारा अहंकार
ये अहंकार शब्द
और अहंकारी लोग
सनकी और ज़िद्दी क्यों होते हैं ?
तभी तो हम शून्य के आविष्कार के बाद
खोज के नाम पर अबतक शून्य पर ही अटके हैं !
त्रेता में खर-दूषण थे,
पर अब तो यहाँ सिर्फ व सिर्फ प्रदूषण है,
हवा-पानी भी फ्री में नहीं
और बह रही यहाँ प्लास्टिक की नदी है,
यह करप्टयुग है,
तेरे-मेरे सपने का 21वीं सदी नहीं !
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7.
■माँ
माँ मतलब
कुंती भी,
मरियम भी,
द्रोपदी-गांधारी भी,
कैकेयी भी,
पुतली भी,
कमला कौल भी,
हीराबेन भी,
चंबल के डकैतों की माँ भी,
मंथरा की माँ भी,
फूलन देवी की माँ भी,
या राष्ट्रमाता भी,
मदर टेरेसा भी,
तो फाँसी पर चढ़ गए
हत्यारे/अपराधी/रेपिस्ट या etc की माँ भी,
जैविक माँ यानी
चाहे विवाहित हो या लिव इन या अविवाहित माँ हो,
या पिल्ले की माँ भी,
माँ मतलब
आदरणीया होती हैं, श्रद्धेया होती हैं !
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