रुमालनामा (लघुकथा)
ट्रेन में शौचनिवृत्ति पर उसे बड़ी कठिनाई होती थी, फुलपैंट को दोनों टाँगों से बाहर निकालकर हाथ में मोड़कर रख लेते हैं, फिर अंडरवियर को एक टाँग से निकालकर दूजे टाँग से चस्पाये रखते है।
गाड़ी हिलती है, मल भी छिटकती है। सबसे ज्यादा परेशानी ‘गाँ…’ धोने में होती है। इस बीच दो परेशानी और भी आ ही जाती है, बाहर से अनवरत नॉक किया जाना, फिर अचानक ही नल से पानी खत्म हो जाय ! एकबार तो उसने अपनी ही मूत से ‘गाँ…’ धोये थे।
जब कोल्ड ड्रिंक पीने का औकात नहीं हो, तब बेसिलरी वाटर से ‘गाँ…’ धोने की नियति अवास्तविक ही है, उन जैसों के लिए…. फिर तब हगलगाँ…. दूसरे वाशरूम जा-जाकर पानी ढूढ़ते जाना किसी खोज या आर्किमिडीज की यूरेका से कम के प्रयास नहीं हुए थे, उस दिन उसके लिए ! फिर भी सफलता नहीं मिली, रुमाल से गाँ…. पोंछकर ‘रुमाल’ लैट्रिन के छेद बाहर गिरा देने पड़े!
यह रुमाल उसे प्रेमिका ने दी थी…. पर यह किस्सा उसे सुनाकर वो अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मार लिये ! दोनों में संबंध-विच्छेद हो गए….
कहते हैं, तब से ही प्रेमी या प्रेमिका को रुमाल देने से रिश्ते में दरार आ जाती है !