कविकुल शिरोमणि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (विशेष लेख)
भारत भूमि पर हर युग, हर काल में महापुरुषों का अवतरण होता रहा है । इन महापुरुषों ने केवल भारत को अपितु समूचे विश्व को अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से अभिसिंचित कर इस विश्व धरा का मान बढ़ाया है और लोगों की सुषुप्त मानसिकता को जागृत किया है ।
ऐसे महापुरुष जब तक शरीर में होते हैं सतत राष्ट्र हित के, समाज हित के कार्य करते हैं लेकिन जब ये अपने शरीर को छोड़ देते हैं तो इनका यश रूपी शरीर इनका कार्य करता है । ऐसे इतिहास में अनेकानेक विद्वानों का परिचय मिलता है जिन्होंने जीवनभर जीवन देवता की साधना आराधना की ।
आज हम भारत के एक ऐसे मनीषी के कृतित्व और व्यक्तित्व की चर्चा कर रहे हैं जिनका नाम पूरा विश्व बड़े सम्मान के साथ लेता है ,जी हाँ हम बात कर रहे हैं कविकुल शिरोमणि श्री रवींद्रनाथ टैगोर (ठाकुर) की जिन्हें लोग श्रद्धा से गुरुदेव कहकर पुकारते थे ।
ये वो महान विभूति थे जिनसे भारतीयों के साथ-साथ अंग्रेजी सत्ता भी प्रभावित थी । इनका चिंतन,मनन,लेखन व्यक्ति और समाज को झकझोर देने वाला था । इनकी साहित्यिक रचनाएँ जितनी उस समय प्रासंगिक तथा लोकप्रिय थी उतनी है आज भी है जिन्हें समय-समय पर सिनेमा भी अपने पर्दे पर उतारता रहता है ।
हमारे देश के इस महान कवि का जन्म कोलकाता की जोड़ासांको की हवेली में हुआ था। इनके पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर था और इनकी माता का नाम शारदा देवी था। रवीन्द्रनाथ टैगोर के कुल 12 भाई बहन थे और वे अपने माता पिता की 13 वीं संतान थे। रवींद्रनाथ टैगोर जी के बचपन में ही इनकी माता का निधन हो गया था और इनके पिता ने अकेले ही इनका और इनके भाई बहनों का पालन पोषण किया था।
रवींद्र नाथ टैगोर ने सेंट जेवियर नामक स्कूल से अपनी शुरूआत शिक्षा हासिल कर रखी है। रवींद्रनाथ टैगोर के पिता उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे इसलिए उन्होंने टैगोर का दाखिला 1878 में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में करवा दिया था। कुछ समय तक यहां पर कानूनी पढ़ाई करने के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ने का फैसला किया और वे बंगाल वापस आ गए। दरअसल रवींद्रनाथ टैगोर की रुचि साहित्य में काफी थी और वे साहित्य के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना चाहते थे। साल 1880 में बंगाल आने के बाद इन्होंने कई सारी कविताएं, कहानियां और उपन्यास प्रकाशित किए और वे बंगाल में प्रसिद्ध हो गए।
साल 1883 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मृणालिनी देवी से विवाह किया था। जिस वक्त इन्होंने मृणालिनी देवी से विवाह किया था उस समय मृणालिनी देवी की आयु महज 10 साल थी। इस विवाह से इन्हें पांच बच्चे हुए थे, जिनमें से दो बच्चों की मौत बचपन में ही हो गई थी। वहीं साल 1902 में रवीन्द्रनाथ टैगोर की पत्नी मृणालिनी देवी का भी निधन हो गया था।
रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन काल में कई सारी किताबें, नाटक, निबंध, लघु कथाएं और कविताएं लिख रखी हैं। अपने नाटक, किताबें और लघु कथाओं के माध्यम से ये गलत रीति-रिवाजों के नकारात्मक असर के बारे में लोगों को बताया करते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखी गई लघु कथा ‘काबुलिवाला’, ‘क्षुदिता पश्न’, ‘अटोत्जू’, ‘हैमांति’ काफी प्रसिद्ध हैं । जबकि इनके द्वारा लिखे गए उपन्यासों में ‘नौकादुबी’, ‘गोरा’, ‘चतुरंगा’, ‘घारे बायर’ और ‘जोगजोग’ विश्न भर में प्रसिद्ध हैं। कविताएं, उपन्यास और लघु कथाओं को लिखने के अलावा रवींद्रनाथ टैगोर को गीत लिखने में भी काफी रुचि थी और इन्होंने अपने जीवन काल में कुल 2230 गीत भी लिखे थे।
रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिख गई गीतांजलि नामक कविता के लिए इन्हें साल 1913 में नोबेल पुरस्कार मिला था। जिसके साथ ही वे भारतीय मूल के और एशिया के पहले ऐसे व्यक्ति बन गए थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वहीं साल 1915 में इन्हें अंग्रेजों द्वारा ‘सर’ की उपाधि भी दी गई थी।
रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन की अंतिम सांस कोलकत्ता में 7 अगस्त 1941 में ली थी। जिस वक्त इनका निधन हुआ था इनकी आयु 80 साल की थी और इनके निधन के साथ ही हम लोगों ने एक महान कवि को खो दिया था।
इस महाकवि का कलेवर तो हमारे बीच नहीं है लेकिन अपनी रचनाओं के माध्यम से सदैव ये हमारे हृदयों में निवास करते रहेंगे और हमें समाज के लिए कुछ श्रेष्ठ करने के लिए प्रेरित भी करते रहेंगे | ऐसे महापुरुष के चरणों में हमारा श्रद्धासिक्त नमन । सर्वाधिकार सुरक्षित