माननि के प्रति
प्रिये कहाँ से आ रही,
प्रिये कहाँ पर जा रही।
किसके आगमन पर राह मे,
हृदय कुसुम वीछा रहीं।
नेह नयन भर छा रही,
सांस – सांस गा रही।
अग्निपथ का पथिक है,
तो क्यो गले लगा रही।
पग-पग गली हो चाह मे,
पग-पग जली हो आह मे।
गीत की एक गंध लेकर,
पग-पग चली हो राह मे।
तुम निशीथ मे क्यो आती है,
मेरे हृदय को छू जाती है।
अनजाने राहों मे पंकज,
नेह नयन भर दे जाती है।
सपना नया दिखाने आती,
अपना किसे बनाने आती।
मरा हुआ पाषाण हृदय है,
उसको क्यो गीत सुनाने आती।
तुम उसको आज बुला लेना,
अमृत रस बूद पिला देना।
जो रजनी मे जाग रहा है,
प्रिये उसको गीत सुना देना।
प्रिये तुम्हारी बारी है,
प्रेम प्रेम पर भारी है।
जीवन के हर मोड़ पर,
हम तेरे आभारी हैं।
कहा बात तुम्हारी टारी है,
मेरी नेह गगरिया खाली है।
तुम बागों की फूल मनोहर,
हम बागों के माली है।
अब नही ओ बात है,
अब नही ओ रात है।
प्यार के इस राह मे,
हर जगह हिमपात है।
जब नही ओ साथ है,
बस नैन से बरसात है।
जल रहा है जल मे पंकज,
उड़ती गगन मे राख है।
क्यो मीत मेरा सो गया,
क्यो गीत मेरा रो गया।
अनगिनत निधिया हमारी,
फिर आज कैसे खो गया।
पीर की यह राह है,
दे गयी ओ आह है।
स्वप्न मे हमको तुम्हारी,
अब नही ओ चाह है।
यहा टूट गया आज मै,
यहा लूट गया आज मै।
प्रीति की माला बनी तो,
क्यो छूट गया आज मै।
सब जानकर के चले गये,
सब मानकर के चले गये।
जितने अनकहे मेरे गीत थे,
सब दान कर के चले गये।
— पंकज कुमार शुक्ल ‘प्राणेश’