कई दिवसों में एक ‘विश्व शौचालय दिवस’ भी है !
उनदिनों ‘मैदान’ जाने का मतलब शौचनिवृति से था। तब 30 करोड़ आबादी थी, अब तो 130 करोड़ आबादी है । खुले में शौच का दुःखान्त पक्ष महिलाओं की इज़्ज़त से भी जुड़ी है, जो कि नकारात्मक लोगों के बीच ‘बलात्कार’ स्थिति को जन्म दे सकता है । घर के अंदर शौचालय, अगर पूजालय भी वहीं है, तो वेद – मंथन लिए उचित तो नहीं है, किन्तु अगर इसकी बनावट व बुनावट हम व्यवस्थित प्रकार से करें, तो यह शौचालय भी घर का एक रूप ही लगेगा !
यह दिक्कत तब और आती है, जब परिवार बड़ा हो और आवासीय भूमि थोड़ी हो तथा शौचालय की सेफ़्टी मलटंकी बड़ी बनाई जानी हो, तो काफी दिक्कतें आती हैं, वैसे में और भी तब जब परिवार बीपीएल हो। आर्थिक दिक्कत का समाधान सरकार द्वारा देय सिर्फ ₹12,000 नहीं है, क्योंकि एक अच्छी व पक्की शौचालय और मलटंकी बनाये जाने में कम से कम ₹1,20,000 आएंगे । चूंकि मलटंकी का सुलभ उपाय मिट्टी के पाट तो ज्यादा दिनों तक टिकाऊ नहीं रह पाते हैं । अगर शौचालय की मलटंकी मकान के नीचे कर दी जाय, तो मल भरने के बाद इन्हें खाली करने व कराने में व सफाई करने व करवाने में काफी दिक्कतें और अव्यवस्था आड़े आती हैं।
वहीं दूसरी ओर जिनके यहाँ एकमात्र शौचालय है और परिवार के सभी सदस्य जॉब में हो, तो सुबह शीघ्र फ़ारिग होने के चक्कर में अंडरवियर में ही मल उतर आती हैं । यह मैं प्रैक्टिकल कह रहा हूँ, ऐसे में वैकल्पिक शौचालय की भी व्यवस्था हो यानी हर घर में कम से कम दो शौचालय तो होने ही चाहिए, फिर इसे बनाने के लिए सरकार को बाजार रेट के अनुसार अनुदान देने चाहिए । हाँ, बीपीएल परिवारों को यह अनुदान मुफ़्त मिले!
सोच और शौच एक-दूसरे के पूरक तो नहीं, किन्तु शौच पर बैठने के बाद ‘सोच’ आने स्वाभाविक है ! शौचालय की अपनी विशिष्टता है । दुनिया में जिसने पहलीबार घर के साथ अटैच्ड शौचालय बनाये होंगे!
सच में, उनकी सोच का मैं कायल हूँ ! ओडीएफ यानी खुले में शौचमुक्त होना भी हमारे उत्तम सोच के साथ विशिष्टतम निरंतरता लिए है !
तिथि 19 नवम्बर को ‘विश्व शौचालय दिवस’ है, प्रत्येक घर में शौचालय हो तथा इसके बनाने और संरक्षण के प्रति सभी समर्पित हो । विश्व शौचालय दिवस ही नहीं, हर दिन व दिवस हम खुले में शौच को ‘ना’ तो कहे ही, साथ ही दूसरे को भी ऐसा न करने को दें । इसके लिए परस्पर और पूरकीय सहयोग अपेक्षणीय है। हमें अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने ही होंगे।