बालगीत “गुलमोहर पर छाई लाली”
लाल रंग के सुमन सुहाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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रूप अनोखा, गन्ध नहीं है,
कागज-कलम निबन्ध नहीं है,
उपवन से सम्बन्ध नहीं है,
गरमी में हैं खिलते जाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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भँवरों की गुंजार नहीं है,
शीतल-सुखद बयार नहीं है,
खिलने का आधार नहीं है,
केवल लोकाचार निभाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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कुदरत की है शान निराली,
गुलमोहर पर छाई लाली,
वनमाली करता रखवाली,
पथिक तुम्हारी छाया पाते।
लोगों को हैं खूब लुभाते।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)