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हम ‘बहन दूज़’ के बारे में क्यों न सोचें ?  

हम ‘बहन दूज़’ के बारे में क्यों न सोचें ?
पिछले कई वर्षों से #Bahan_दूज़_Revolution नामक अभियान चला रही आरटीआई एक्टिविस्ट और शिक्षिका सुश्री अर्चना कुमारी पॉल ने ‘बहन दूज़’ मनाने पर जोर दी है । सुश्री अर्चना की इस मुहिम को 2016 में हिंदी साप्ताहिक ‘इंडिया टुडे’ ने पुरस्कृत पत्र के रूप में एक बड़े कॉलम में जगह दी, दैनिक जागरण ने भी कई वर्षों से इस अभियान पर शीर्षक दिया- ‘बहन दूज़ भी मनाया जाए’।

सुश्री अर्चना कहती हैं– “भारत में नारियों की पूजा की जाती है, लेकिन पूजा ‘देवी’ के रूप में होती हैं, किन्तु यह प्रतिमा के रूप में होती है। भारतीय नारी अपने भाई की रक्षा के लिए भैयादूज़, पति के दीर्घायु जीवन के लिए करवा चौथ व तीज़ तथा बेटे की लंबी उम्र के लिए जिऊतिया व्रत रखती हैं, किन्तु देश में नारियों के लिए पुरुष द्वारा किया जानेवाला कोई व्रत नहीं है । हमारे विद्वान पंडितों को ‘बहन दूज़’ जैसी पर्व मनाने की व्यवस्था करनी चाहिए । इससे बहनों की मनोबल बढ़ पाएगी और उनमें समानता का बोथ भी पैदा होगी।”

अद्भुत, किन्तु शोधित एक पौराणिक कथा को ‘मैसेंजर ऑफ आर्ट’ ने प्रकाशित किया है, यथा- “पृथ्वी से 149.6 million km दूर है भगवान सूर्य, जो कि किसी और विशाल आकाशगंगा की आगवानी करते गत्यात्मक स्थिति में है, किन्तु हमारे सौर परिवार में बिल्कुल ही स्थिर प्रतीति लिए है, परंतु पृथ्वी के ऊपरी आवरण धरती से हम उसे सूर्योदय से सूर्यास्त की ओर कदम बढ़ाते व चलते देखते हैं ! यह आभासी लिए है ।

हिन्दू सनातनी-विन्यासानुसार अथवा ग्रांथिक मान्यतानुसार सूर्यदेव भी परिवार से जुड़े हैं, जिनका भी प्रतीक रूप में मानावाकार (धरती पर के सर्वोत्कृष्ट योनि) प्रविष्टि लिए है । हाँ, ऐसे ही कथा व कथ्यानुसार सूर्यदेव की धर्मपत्नी का नाम ‘छाया’ है, तो कोई ‘संज्ञा’ कहते हैं । हो सकता है, ये दो नाम उनकी दो पत्नियों के हों ! हो सकता है, ये दोनों नाम एक ही देवी की हों, जिनके एक निक नाम हो । वैसे सूर्य ने कुँवारी कुंती के साथ भी सहवास किये थे, जिनसे कर्ण पैदा हुए थे । कुंती – प्रकरण को यहीं विराम देकर हम छाया अथवा संज्ञा पर आते हैं ।

वैज्ञानिक सोच तो यह है कि सूर्य हमेशा ही प्रकाशित हैं, बावजूद पौराणिक श्रुतियों के अनुसार जहाँ सूर्यास्त के बाद आई अंधकार व छाया देवी सूर्यदेव की पत्नी है, इन्हीं छाया की कोख से यमराज नामक पुत्र तथा यमउणा नामक पुत्री ने जन्म लिये । बात भले ही तर्कों से ‘सत्याल्प’ भी सिंचित न हो कि ‘जिस सूर्य में इतनी तेज व आग हों, तो उनके निकट कोई कैसे रह सकती है !’….तो बच्चों की बात तो दूर है ! यह विचारणीय प्रश्न है ?

यमराज और यमउणा में कौन बड़े हैं, यह सुस्पष्ट नहीं है । परंतु यमउणा भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती रही हैं ! वर्त्तमान में क्या स्थिति है, यह सिर्फ़ कयास लगाए सकते हैं ! कालांतर में यमउणा ‘यमुना’ नदी कहलायी, तो यमराज ‘मृत्यु’ के देवता के रूप में संज्ञार्थ हैं । कथ्य है, यमुना नदी अपने भाई यमराज को हमेशा कहती रहती– ‘वह उनके घर आया करें ‘, लेकिन ईमानदारी से वशीभूत हो कार्यों में नेकव्यस्त, वह बहन की कही बातों पर कभी भी खरा नहीं उतर सका ! किन्तु कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन बहन यमुना को भाई यमराज की याद आयी और इस तिथि को नहीं आने पर भाई से कभी भी न बोलने की कसमें खा बैठी । ईमानदार यमराज को हर कार्य स्थगित करते हुए बहन यमुना के द्वारे आना पड़ा । कहा जाता है, विक्रमी संवत के कार्तिक शुक्ल द्वितीया को प्रत्येक साल बहन के घर भाई आते हैं और तब एक-दूसरे के प्रति दुलार-पुचकार होता है । ऐसे में यहाँ ‘बहन दूज़’ होने की परंपरा जुटती है, किन्तु पुरुषवादी समाज अपनी जिद को आगे रखते हुए ‘भैयादूज़’ की नींव रख डालते हैं !

धरती पर भारत सरकार ने ‘ईश्वरीय कैलेंडर’ के अनुसार ‘इंसानी कैलेंडर’ तैयार कराते हुए छुट्टियां ‘डिक्लेअर’ की । यम को भी अवकाश मिला। यम ‘गिफ्ट’ (उपहार) के साथ बहन से मिलने उनके घर पहुंचा, उसका गिफ्ट तो काफी शानदार था, उसने नरक में निवास करने वाले सभी को स्वर्ग का टिकट दे नरकमुक्त कर दिया।

कहा जाता है, तब से धरतीवासी अपने मृतक संबंधियों को स्वर्गीय व स्वर्गवासी कहते हैं, नरकवासी नहीं ! इस भाई – बहनों के इस प्रथम ‘दूज़’ (मिलन व द्वितीया) में भाई यम को देख बहन यमुना फूली न समाई और अतिउत्साही यम ने बहन से वर माँगने यानी गिफ्ट मांगने को कहा ।यमुना गिफ्ट के रूप में भाई से भौतिक सुख न माँगकर, प्रति वर्ष इसी दिन घर आने का वचन मांगी और कहा कि इस दिन कोई भाई बहन की व एक-दूसरे का आदर-सत्कार करें, तो उससे मृत्यु उनके नजदीक न आ पावेंगे ! किन्तु किसी की मृत्यु के बाद यमुना नदी किनारे अंतिम संस्कार भी बहन से मिलाने की परंपरा को आज भी जीवंतता दिए है ! परंतु क्या यह ‘दूज ‘ भाइयों की लंबी उम्र के लिए है, तो यमराज नामक भाई ही तो खुद मृत्यु देव हैं, उन्हें लंबी उम्र की क्या आवश्यकता ? उसने तो धरतीवासियों को मोहरा बना कर  यम खुद अपनी उम्र को ‘अमर’ कर लंबी उम्र सँजो लिया!”

चूँकि यह कहानी एक बहन के अभियान से शुरू होती है, इसलिए यह ‘भैया दूज’ नहीं; वरन इस चैप्टर को निश्चितश: ‘बहन दूज’ कहा जाना चाहिए!

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.