लघुकथा

माता की आशीष

मदर्स डे पर विशेष

आज दीपक-ज्योति का बेटा प्रकाश बैंगलोर में एम.बी.ए. करने गया हुआ है. दीपक ने खुद भी बैंगलोर से एम.बी.ए. किया था. वहीं पर ज्योति से उसकी मुलाकात हुई थी, जिसने आगे चलकर चाहत का रूप ले लिया था. ममी-पापा ने उसकी चाहत को उसका जीवनसाथी बना दिया था. यह बात दीपक कैसे भूल सकता है!

भूलना तो ”माता की आशीष” को भी नामुमकिन है. 22 साल का लंबा समय भले ही बहुत आगे चला गया हो, लेकिन यादों के सफर की तो कोई अवधि ही नहीं होती है न! उसे यह आज की बात लग रही थी!

”ममी, आजकल आप रोज सुबह 6 बजे कुछ खास कर रही हैं क्या?” दीपक ने फोन पर मां से पूछा था.

”बेटा, मेरी एक सहेली ने अपने छोटे-छोटे बच्चों को सुबह सलीके से जगाने के लिए एक भजन ”माता की आशीष” लिखा है. मुझे यह भजन इतना अच्छा लगा, कि मैंने उसे नोट कर लिया है और रोज सुबह 6 बजे गाती हूं. तुम्हारा सुबह उठने का 6 बजे का अलॉर्म लगा हुआ है न! कोई खास बात!”

”ममी, उस समय बड़ा अच्छा लगता है. ऐसा लगता है जैसे प्यार भरी थपकियां देकर आप मुझे उठा रही हों. अगली बार चिट्ठी में यह भजन लिखकर भेजिएगा.”
स्नेह-ममता-श्रद्धा भरी उस आशीष ने ही उसे निरंतर प्रगति की चोटी पर आरोहित किया था.

उस पत्र का वह कागज़ आज भी दीपक के पास सुरक्षित रखा हुआ है. वे खुद भी तो बेटे को आशीष दे ही सकते हैं न!

”जगें भाग बेटा माता की आशीष है, आशीष है,
सद्बुद्धि तुमको दें प्रभु आशीष है, आशीष है.”

बड़ी श्रद्धा से गुनगुनाकर ज्योति को वह भजन सिखा रहा था. माता के भजन के साथ ही उसे अपने मस्तक पर माता की आशीष का वरद हस्त भी महसूस हो रहा था.

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भजन- माता की आशीष
जगें भाग बेटा माता की आशीष है, आशीष है,
सद्बुद्धि तुमको दें प्रभु आशीष है, आशीष है.
संतों का तुझको संग मिले आशीष है, आशीष है,
संतोष-धन से पूर्ण हो आशीष है, आशीष है.
परमात्मा का ध्यान हो आशीष है, आशीष है,
सद्गुण से हो भरपूर तुम आशीष है, आशीष है.
नित गुरुजनों को मान दो आशीष है, आशीष है,
छोटों पे बरखा प्यार की आशीष है, आशीष है.
बलवान हो बुद्धिवान हो आशीष है, आशीष है,
जग में बढ़े सम्मान यह आशीष है, आशीष है.
आयु बड़ी हो स्वस्थ हो आशीष है, आशीष है,
दुःखियों का दुःख हरते रहो आशीष है, आशीष है.
जग का करो कल्याण यह आशीष है, आशीष है,
मन में न हो अभिमान यह आशीष है, आशीष है.
सत्पथ पे नित चलते रहो आशीष है, आशीष है,
निष्काम हो निर्भय रहो आशीष है, आशीष है.
उठ जाग बेटा माता की आशीष है, आशीष है,
सद्बुद्धि तुमको दें प्रभु आशीष है, आशीष है.

बिटिया के लिए-
जगें भाग बिटिया माता की आशीष है, आशीष है,
सद्बुद्धि तुमको दें प्रभु आशीष है, आशीष है.
लीला तिवानी

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “माता की आशीष

  • लीला तिवानी

    सृष्टि के रचयिता की सर्वोत्तम कृति मां.ममता की मूरत,
    मां.के जैसी नहीं जग में सुंदर-मनोहरारी-प्यारी कोई सूरत.

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