कविता

माँ

क्या लिखूँ ?माँ लिखूँ, भगवान लिखूँ या लिखूँ कोई फरिश्ता
या लिखूँ कुछ ऐसा जिससे मिले मुझे माँ के बखान का रास्ता

कैसे लिखूँ कितने दर्द से कोख में पाला
करके जतन कितने बचपन को मेरे ढाला
रात रात अपनी बाहों में लेकर झुलाया
अपने आँचल की छांव में सदा बसाया

कैसे लिखूँ ये अक्षर जो आप पढ़ रहे है
सब मेरी माँ की तालीम का फल है
उंगली पकड़कर क ख ग घ सिखाया
वो तालीम ही आज लगती सफल है

जिंदगी के गहन उतार चढ़ावों की मझधार में
अपने खुद को बना पतवार सदा हमको सम्हाला है
अपने को बना विशाल बरगद की तरह
ममता की छाँव में हम सबको पाला है

कैसे लिखूँ,करके अपने सब सुखों का परित्याग
सदा हम पर प्यार और ममता बरसाई है
पर ये दावे से और सीना ठोककर लिख सकता हूँ
भगवान के रूप में ही हम सबने माँ पाई है

कुछ भी लिखो दावे से ये कह सकता हूँ
भगवान भी शायद वो शब्द ना गढ़ पाएंगे
जिससे हम माँ की ममता,त्याग और बलिदान
या फिर माँ के मन के भावों को कभी पूरा समझ पाएंगे
$पुरुषोत्तम जाजु$

पुरुषोत्तम जाजू

पुरुषोत्तम जाजु c/304,गार्डन कोर्ट अमृत वाणी रोड भायंदर (वेस्ट)जिला _ठाणे महाराष्ट्र मोबाइल 9321426507 सम्प्रति =स्वतंत्र लेखन