नर्सों के सेवा समर्पण को सलाम
नर्सों के सेवा समर्पण को सलाम
मुझे याद आते हैं वे दिन जब ग्वालियर के एक निजी नर्सिग हॉम, ममता हॉस्पिटल में जुलाई सन दो हजार चार में मेरा किडनी का ऑपरेशन हुआ। मेरी अब तक कि जीवन यात्रा में वे दस दिवस ऐसे गुजरे मानो किसी ने नरक में डाल दिया हो। इन नरकीय कष्ट भरे दिनों में असहनीय दर्द, पीड़ा, कराह की स्मृति से आज भी रूह कांप जाती है। लेकिन इसके साथ ही मुझे एक चेहरा भी याद आता है सांवला गोल मुख, खुली फैली उसकी जुल्फें, एक मोद भरी माधुर्य मुस्कान । यह विशेषण उस दौरान मेरी सेवा में लगी केरल की रहने वाली उस नर्स के लिए है जिसका नाम सोजी था। मैंने उसकी उम्र तो नहीं पूछी , लेकिन मेरी हम उम्र थी। मैंने आज तक किसी को इस समर्पण भाव से सेवा करते हुए नहीं देखा या यह कहूँ कि लगातार किसी अन्य नर्स के सम्पर्क में रहने का अवसर नहीं मिला। मुझे याद है जब वह प्रतिदिन सुबह नौ बजे मेरा बीपी औऱ अन्य चेकप करने आती थी तो लगता था इस हॉस्पिटल के भीतरी भागों में बने मेरे रूम में सूरज अपनी किरणे लेकर आया हो, एक ऊर्जा का अहसास। फिर दो घण्टे बाद इंजेक्शन ड्रिप लगाने के लिए आना और कुछ देर मेरे पास बैठकर उसका मुझे हौसला देना मानो ऐसा लगता था जैसे मुझे प्राणवायु मिल रही हो।कुछ देर बाद फिर उसका आना मेरी माँ के पास बैठकर मेरे दिन भर की दवाओँ औऱ खाने पीने के सलाह देना। ऑपरेशन के समय ही कैथेटर डाला गया था तो उसे एक दो बार उसने बदला भी। मुझे बड़ा अजीब लगता था, लेकिन उसके लिए मानो बिल्कुल सहज हो। मेरे उन भागों को उसका चिकित्सा की दृष्टि से छूना मेरे लिए बड़ा विचित्र होता था । एक दिन मैंने पूछ लिया सोजी ये बताओ तुम्हें ये सब करते हुए अजीब नहीं लगता। हल्की मुस्कराती हुई , मेरा नाम पुकारती हुई बोली मेरे लिए न कोई लेडी है न जेंट्स है, न ओल्ड है , न चाइल्ड। बस पेसेंट है। पेसेंट के फेस की मुस्कान लाना ही मेरी ड्यूटी है। उसके दर्द को हम दवा से ठीक करते हैं लेकिन उसकी पीड़ा को हम अपनी सेवा से ठीक करने की कोशिश करते हैं।
दसवें दिन हम हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होकर जब निकल रहे थे तब मेरी माँ ने उसे कुछ पैसे दिए , मेरे प्रति सेवा को भाव से प्रभावित होकर। मुझे याद है तब उसने हाथ जोड़कर कहा माताजी ! मुझे हॉस्पिटल से वेतन मिलता है मुझे पैसे मत दो बस अपना आशीर्वाद दो ताकि मैं किसी भी मरीज को सेवा करते हुए उसकी पीड़ा को कम कर सकूँ।
मैंने चलते चलते सोजी का हाथ पकड़ लिया और एक शब्द मुहँ से निकला सोजी तुम महान हो मेरी बहन। तुम्हारे सेवा समर्पण को सलाम करता हूं। कुछ दिनों बाद वह सेवा करने वाली बहन शहर छोड़ कर शायद पता नहीं कहाँ चली गयी।
आज अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस पर कोरोना महामारी में सेवारत विश्व की समस्त नर्सों को सलाम करता हूं।डॉ. शशिवल्लभ शर्मा
[email protected]