किसी के दर्द का ऐसे न ले कोई इंतिहान यहाँ
ग़ज़ल
डूबती कस्ती पर चढ़ने की चाहत भला कौन रखता है
खुदगर्ज़ी के दौर में रिस्तों की परवाह कौन रखता है
किसी के दर्द का ऐसे न ले कोई इंतिहान यहाँ
सागर से उठती लहरों का हिसाब कौन रखता है
सिखाया था जिनको हमने हवा में उड़ने का हुनर
गिराने वो अब हमें हवा में एक ड्रोन रखता है
उनके हर सवाल का हमने दिया है उत्तर सलीके से
वो हमारे हर प्रश्न की जवाबी पर व्रत मौन रखता है
अब तो आना भी कर दिया है बन्द उसने घर मेरे
न जाने क्यों दिन में भी अपना बन्द फोन रखता है
जिस्म पर लगे घाव क्या दिखा बैठे हम उसको
वो आजकल ग्लूकोस के डिब्बे में नोन रखता है
बढ़ जाए जब दर्द हद से ज्यादा, सम्भलना खुद ही
जंगलों में वल्लभ दर्द की, दवा भला कौन रखता है
डॉ. शशिवल्लभ शर्मा