आँगन का गुल महका होगा
मंज़र प्यारा कितना होगा
मैं धारा,वो होगा दरिया
बहक गया दिल कब का होगा
हँसता होगा मन ही मन वह
लिखकर ख़त जब पढ़ता होगा
दूर तलक जब जाते देखा
अश्क आँख से छलका होगा
गुलमोहर सुनता होगा सब
राग दिलों का झरता होगा
भीगे भीगे मौसम में वह
यादों में भी तड़पा होगा
अहसासों की डोरी में इक
मनका रोज पिरोता होगा
यादों की बारिश में मन को
कैसे वो भरमाता होगा
मोहब्बत करता है इतनी
झूठ-झूठ ही लड़ता होगा
✍🏻 रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)