आरजू है दिल की जरा करीब आओ।
लबों में तेरे हंसी मुस्कुरा के दिखाओ।
जालिम है जमाना मिलने नहीं है देता,
उल्फत में न बहाना कोई तुम बनाओ।
हर बार है किया इंतजार इस तरह से,
फुरसत नहीं तुम में इतना न सताओ।
आरजू मेरी दिल की दफन हो न जाए,
गम है मिल सके न ख़ता मेरी बताओ।
तेरे ही गम में खो गई है मेरी जिंदगानी,
हैं अश्क मेरे सूख गये और न रूलाओ।
गेसुओं पे गिर रही हैं शबनम की फुहारें,
दिल जल रहा है मेरा और न जलाओ।
‘शिव’ आरजू है मेरी दीदार की नज़र का,
नज़र भरके देखले जी फिर चले जाओ।
— शिव सन्याल