कविता

मीरा

प्रीत बसी हो जिन नैनन में
उसे धीर कहाँ से आए
ऐसी प्रीत करी मीरा ने
वन-वन भटकी जाए।

लोक लाज सब छोड़ के
प्रेम की अलख जगाए
जिस अंतर में श्याम बसे
कैसे उन्हें हिय बिसराए।

गिरधर की वो प्रेम पुजारिन
कितनी यातना पाए
विष का प्याला पी गई मीरा
अधरों पर श्याम सजाए।

— सपना परिहार

सपना परिहार

श्रीमती सपना परिहार नागदा (उज्जैन ) मध्य प्रदेश विधा -छंद मुक्त शिक्षा --एम् ए (हिंदी ,समाज शात्र बी एड ) 20 वर्षो से लेखन गीत ,गजल, कविता ,लेख ,कहानियाँ । कई समाचार पत्रों में रचनाओ का प्रकाशन, आकाशवाणी इंदौर से कविताओ का प्रसारण ।