स्वास्थ्य

सिकाई

कई बार हमें शरीर के किसी अंग की गर्म या गर्म-ठंडी सिकाई करने की आवश्यकता होती है। विशेष रूप से जब वात रोग के कारण जोड़ों में दर्द होता है, जैसे पैरों में या हाथों में, तो गर्म सिकाई उन जोड़ों की जकड़न को दूर करके दर्द कम करती है। नियमित यह करने पर दर्द सही हो जाता है, यद्यपि उसके साथ उन अंगों के कुछ विशेष व्यायाम करना भी आवश्यक होता है। यह क्रिया पूर्ण लाभ होने तक प्रतिदिन कम से कम एक बार करनी चाहिए। यदि सोते समय दोबारा कर ली जाये, तो अधिक लाभ मिलता है।

गर्म सिकाई की विधि इस प्रकार है- किसी भगौने में आवश्यकता के अनुसार गर्म पानी भर लीजिए। अब एक रूमाल जैसा तौलिया लेकर उसे एक दो बार मोड़कर आवश्यक आकार की पट्टी बना लीजिए। इस पट्टी को गर्म पानी में भिगो लीजिए और हल्का निचोड़ लीजिए। अब इसको उस अंग पर रख दीजिए और उसे ऊपर से किसी ऊनी कपड़े या मोटे तौलिए से ढक दीजिए। दो-तीन मिनट तक रखे रहने के बाद उसे उठा लीजिए और किसी अन्य बर्तन में पूरा निचोड़ लीजिए। अब फिर उसे गर्म पानी में भिगोकर रखिए। इस प्रकार आवश्यक समय तक सिकाई की जा सकती है।

यदि हाथ या पैर की गर्म सिकाई करनी हो, तो पट्टी रखने के बजाय सुहाता हुआ गर्म पानी उस अंग पर आवश्यक समय तक डाला जा सकता है अथवा उस अंग को ही गर्म पानी में डुबोया जा सकता है। यदि घुटनों तक पैरों की सिकाई करनी हो, तो किसी बड़ी बाल्टी या तामड़ी में इतना गर्म पानी भरा जाता है कि पैर पिंडलियों तक अवश्य डूब जायें। फिर किसी मग या लोटे से उसी बर्तन में से गर्म पानी लेकर घुटनों पर डाला जाता है। यदि पानी ठंडा होता जा रहा हो, तो उसमें बीच-बीच में गर्म पानी मिलाकर तापमान आवश्यक सीमा तक बढ़ाया जा सकता है।

गर्म-ठंडी सिकाई

जब किसी अंग में सूजन और दर्द हो, तो केवल गर्म सिकाई के स्थान पर गर्म ठंडी सिकाई करनी चाहिए। इससे वहाँ रक्त का संचालन ठीक होता है, नसें यदि सिकुड़ गयी हों, तो सामान्य अवस्था में आने लगती हैं। गर्म-ठंडी सिकाई से सिर दर्द को छोड़कर प्रायः हर प्रकार के दर्द और सूजन में बहुत लाभ होता है। गठिया में इससे चमत्कारी लाभ प्राप्त होता है। इसके साथ भी उन अंगों के विशेष व्यायाम अवश्य करने चाहिए।

गर्म-ठंडी सिकाई करने के लिए एक भगौने में गर्म और एक में ठंडा पानी लिया जाता है और बारी-बारी से दोनों प्रकार की सिकाई की जाती है। इसका नियम यह है कि पहले एक मिनट तक ठंडी और फिर तीन मिनट तक गर्म सिकाई करनी चाहिए। इस क्रम को तीन या चार बार दोहराया जाता है और अन्त में एक मिनट ठंडी सिकाई की जाती है। सिकाई का समापन हमेशा ठंडी सिकाई से किया जाता है।

— डाॅ विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com