सामाजिक सरोकार लिए सार्थक पहल
आज यानी 15 अगस्त 2019…. सुबह से गुजर शाम कैसे आ गयी, मालूम ही नहीं चल पाई, क्योंकि राष्ट्रध्वजारोहण पश्चात 13 वर्षों से चले आ रहे चर्चित अभियान #justice4राखियाँ के तहत मैंने गाँव की 237 बहनों को राखी बाँधे !
सत्यश:, सुबह से भूखा हूँ, बावजूद आत्मिक आनंद की प्राप्ति हो रही है, किसी बहन का भाई बनने में जो ऊर्जा मिलती है, वह सिर्फ राखी बांधने से नहीं मिलती है, अपितु उनके लिए फर्ज भी निभाना पड़ता है । मैं ऐसे सभी बहनों के लिए भी ताउम्र कोशिश करूँगा, जिसे राखी बांध पाया या नहीं बांध पाई !
13 साल हो गये, इस अभियान को चलाते हुए और हर बार की तरह इसबार भी मेरी ‘दी’ ने मुझे गिफ़्ट भेंट की । गिफ़्ट तो गिफ़्ट है, जिसे यहाँ उल्लेख करना ग़ैर-जरूरी समझता हूँ, बावजूद बता देने में आप मित्रो को एतदर्थ प्रेशर देना चाहता कि इसबार ‘दी’ को राखी बांधने पर मुझ छुटकू को प्राप्त हुई, मेरी ही उपन्यास ‘वेंटिलेटर इश्क़’ । साथ ही मेज़ पर रखने के लिए ‘युगल राष्ट्रध्वज’ संग आँखें हिलाती-डुलाती नन्हकी डॉल वाली ‘राखी’ । मैं आज भी ‘दी’ के लिए छुटकू ही हूँ ! सत्यश:, ‘दी’ ! जीवनपर्यंत आपके ये दुलार, प्यार व स्नेह मुझे तो चाहिए ही ! क्या आपको भी ?”