कविता – संकेत तो नहीं…
कुछ तो समझ
खुदा बने इंसान
या यूँहीं करता रहेगा पूजा
स्वयं को समझ भगवान
ये बीसवां वर्ष तेरे हर्ष का नहीं
जागृत स्वप्न के दर्श का नहीं
अपने से दूसरे के स्पर्श का नहीं
वाइरस का आना
लौट करके ना जाना
कुछ माना या ना माना
बदला हुआ जमाना
अब तूफान भी सर उठाने लगे हैं
बार बार आजमाने लगे हैं
भूकंप से हिलने लगी है दिल्ली
तुझे इस अवस्था में भी
भा रही है खिल्ली
इस कठिन घड़ी को
हँसी में ना गुजार
अनदेखी में छिपी होती हार
कब हटेगा आकर्षण
भ्रम के मयकदा का
समझ ये संकेत तो नहीं
किसी भीषण आपदा का…
– व्यग्र पाण्डे