मुक्तक/दोहा

मुक्तक

है रूप दुर्गा का, रूप है ये काली का,
दमकता मुख, मृगनयन मतवाली का।
माँ की ममता है, प्रेयसी का प्यार भी,
विलक्षण तेज, वीरांगना निराली का।
— अ कीर्ति वर्द्धन