फर्जी आँसू
हर बार की तरह
अबकी बार भी
लिखने को
कोई शब्द नही है,
माफ कर दो
वो भूखे गर्भवती हाथनी
मानवता मर गई है
कोई लब्ज नही है,
लिख रहे है, उन पशु प्रेमी के लिये
जो फर्जी आँसू बहाते
आज मानवता की
दुहाई चलेगी
मोमबत्ती जलेगी
नकली आँसू बहेगी,
अखबारों में बड़े लेख
लिखे जाएंगे
समाचारों पर आंसू दिखा
दुःख व्यक्त हो जाएंगे,
कल परसो बीत जायेगा
अपने ऑफिस में
बैठकर वो चाय संग
ठहाके लगाएंगे।।
— अभिषेक राज शर्मा