कबीर दास जी की सत्य निष्ठा
महात्मा कबीर का पालन पोषण एक जुलाहे के घर हुआ था और उन्होंने स्वयं भी उसी पेशे को अपनाया था एक बार की बात है वे रूई पींज रहे थे पास ही पींजी हुई रुई का ढेर लगा था उसी समय एक आदमी दौड़ता हुआ कबीरदास के पास आया और बोला _”महाराज कृपा करके मुझे बचा लीजिए मैं निरपराध हूं सिपाही किसी चोर के बदले मुझे पकड़ना चाहते हैं मुझे कहीं छुपा लीजिए वरना मैं बेमौत मारा जाऊंगा। “कबीर ने उसकी तरफ देखा और कहा _”इस रुई के ढेर में छिप जाओ ।”वह आदमी तत्काल रुई के ढेर में छिप गया कबीर फिर से रूई पींजने में तल्लीन हो गए तभी सिपाही आ गए उन्होंने कबीर को प्रणाम किया और पूछा _”महात्मन! यहां कोई चोर तो नहीं आया था” कबीर ने उत्तर दिया _”चोर तो इस रुई के ढेर में छिपा है।”कबीर ने इस ढंग से यह बात कही की सिपाहियों में ने इस बात को मजाक समझा और वहाँ से चले गए। थोड़ी देर बाद रुई के ढेर में छिपा आदमी बाहर आया और कबीर द्वारा सिपाहियों को सच्ची बात बताने पर वह उन पर गुस्सा करने लगा इस पर कबीर ने शांत भाव से कहा_ “भैया !इतना नाराज क्यों होते हो ,।यदि मैं सच ना बोलता तो वे तुम्हें जरूर ढूंढ लेते ।यह मेरे सच बोलने का नतीजा है कि सिपाही चले गए और तुम्हारी जान बच गयी।”
प्रेषक : सुनीता द्विवेदी
कानपुर उत्तरप्रदेश