कविता

कविता- चिट्ठी का दौर

जब तुम चिठ्ठी लिखा करते थे
सच में उलझन रहता था,
खामोशियो में इंतजार चिठ्ठी की
कई दिनों तक करता था,
हर रोज डाक पर हो आते थे
पूछ पता तेरे चिठ्ठी की
एक ठंडी आहे भरता था,
निगाह लगाये राहों पर
कि कब डाकिया आयेगा
देख डाकिये को अपने गली में
मन उमंग भरता था,
अपनी चिट्ठी ना होती
डाकिये के झोले में
मायूस मन लेकर
कल का इंतजार करता था।।
— अभिषेक राज शर्मा

अभिषेक राज शर्मा

कवि अभिषेक राज शर्मा जौनपुर (उप्र०) मो. 8115130965 ईमेल [email protected] [email protected]