कविता- चिट्ठी का दौर
जब तुम चिठ्ठी लिखा करते थे
सच में उलझन रहता था,
खामोशियो में इंतजार चिठ्ठी की
कई दिनों तक करता था,
हर रोज डाक पर हो आते थे
पूछ पता तेरे चिठ्ठी की
एक ठंडी आहे भरता था,
निगाह लगाये राहों पर
कि कब डाकिया आयेगा
देख डाकिये को अपने गली में
मन उमंग भरता था,
अपनी चिट्ठी ना होती
डाकिये के झोले में
मायूस मन लेकर
कल का इंतजार करता था।।
— अभिषेक राज शर्मा