कविता

बनेंगे हम विश्व के

बनेंगे हम विश्व के
अपनी कला को
अपने साहित्य को
अपने विचार को
आदर के साथ लेते
एक दूसरे के साथ बाँटते
एक दूसरे की मान्यता देते
एक दूसरे का मान – सम्मान दिलाते
आगे के आगे हम
मानवता की ओर
एक ही परिवार का
बनेंगे हम विश्व के ।

आधुनीकी तकनीकी के सहारे
मिलेंगे हम एक दूसरे से
विज्ञान के इस वरदान का
सदुपयोग हम करेंगे
परिचित करायेंगे हम
एक दुसरे के
अपनी भाषा – रहन – सहन
जीवन के विभिन्न ढंग को
गौरवान्वित होंगे एक दूसरे से
प्रेम, भाईचारे की भव्यता को
इस दुनिया में गढ़ते चलेंगे ।

ऊंच – नीच, अमीर – गरीब,
जाति – धर्म की अहंमान्यताएँ
मनुष्य – मनुष्य के बीच में
बाधक नहीं बनने देंगे
सीखेंगे हम
एक दूसरे से
नयी – नयी बातें जो
मनुष्य के हित के हों
वो अपने दिल में भरते
जिंदगी का मूल्य
हम निकालते चलेंगे
प्रगति का अर्थ
हम बनाते चलेंगे
बनेंगे हम विश्व के
बनेंगे हम विश्व के ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।