रंजिशें
रंजिशें कुछ इस तरह
पाल ली हमनें
अपने दिलों में
सही क्या
गलत क्या
इस बात को
सोचना
दिमाग ने
विस्मृत
कर दिया
बैठ कुछ देर
शांत मन
सोच गहराई से
कहां कोई गलती हुई
जो एक दीवार
मन में खिंची
कोई भी दीवार
ऐसी नहीं
जो न गिर सके
होनी चाहिए
बस एक चाह
रंजिशों
से बाहर निकल आने की
बड़ी बड़ी रंजिशे भी
दोस्ती में बदलती
देखीं जमाने में
कोई भी चीज
सदा एक सी रहती नहीं
वक़्त के साथ
बदलती हैं सभी
— ब्रजेश