ग़ज़ल
मुझमें कोई तो कमी रही होगी।
आँख में कुछ नमी रही होगी।।
पत्थरों में भी बीज बो डाले,
उस जगह कुछ जमीं रही होगी।
उनको देखा तो चश्म भर आए,
उनके घर में गमी रही होगी।
हाथ छूते ही गिर पड़े थे वे,
वह कोई इक डमी रही होगी।
बहुत जोरों का इक तूफान उठा,
कुछ यकीनन हवा थमी रही होगी।
लौट आई जो मेरे जिस्म में रूह ,
यम की कोई तो कमी रही होगी।
अनहोनी का ‘शुभम’ मंजर कैसा,
बदहाल सर ज़मीं रही होगी।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’