बाल श्रम
दूध के सारे दाँत समय से पहले ही टूट गये,
जिन्दगी की शुरुआत मे ही विधाता रूठ गये।
मजबूरियों ने हाथ मे चाय की केतली क्या पकडाई,
मैने करीब से देखी अपने बचपन की अंगडाई।
चाय की चुश्कियों मे अभिषेक अब मिलावट हो गयी,
आडी तिरछी जिन्दगी की सारी लिखावट हो गयी।
चाय से ज्यादा अब चाय पर चर्चा हो रही है,
इसकी बिक्री में भी भारी गिरावट हो गयी है।
जरूरी नही हर एक चाय बेचने वाला बुलंदियों पर पहुँचे,
क्योंकि गरीब के बचपन पर भारी इसकी गर्माहट हो गयी है।’
— अभिषेक शुक्ला