मुक्तक
गर जरूरी हो तभी घर से निकलना चहिये
चलने वालों से सही दूरी भी रखना चहिए
जाने मिल जाये कहां कोई कोरोना वाला
आपके अपना एहतियात तो रखना चाहिए
आग पीती चिमनियाँ जब धूँवा उगलती है
दर्द के एहसास से ये भी पिघलती है
जब कहीं होता सृजन कल कारखानो में
तब वहीँ इस्पात से कविता निकलती है
लेखनी में धार है लिखते रहें
जो नहीं लाचार हैं लिखते रहें
एक दिन हालात बदलेगे जरुर
मरहले तैयार हैं लिखते रहें ।
— मनोज श्रीवास्तव